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Thursday, 4 August 2016

अगर तुम अपना बुरखा नहीं उतारोगी तो आप यहाँ वक़्त बर्बाद कर रही हो।

इक महिला के साथ हुआ ऐसा की उसको बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ी,ये महिला जब जॉब के लिए इक सुनार की दूकान पर गयी और वहा आवेदन दिया नोकरी का तो सुनार ने पहला सवाल किया के अगर आप हिजाब नहीं उतारोगी तो कोई फायदा नहीं है आपको इस दूकान पर रखने का,उस दूकानदार का सीधा इशारा था के अगर बुरखे में रहकर आप यहाँ दूकान पर काम करना चाहती है तो कोई भी कस्टमर नहीं रुकेगा जब तक आप अपना चेहरा उस शक्श को नही दिखाओगी,ये बात सुनकर लड़की शर्म से पानी पानी हो गयी और तुरंत वहा से उठकर चली गयी।

स्त्री के खिलाफ बढ़ते हुए अपराध और इससे निपटने के तरीके यहाँ पढ़े।

पिछले कुछ वर्षों में बर्बरतम स्त्री-विरोधी अपराधों की बाढ़ सी आ गयी है। ये अपराध दिन ब दिन हिंस्र से हिंस्र होते जा रहे हैं। समाज में ऐसा घटाटोप छाया हुआ है जहाँ स्त्रियों का खुलकर सांस ले पाना मुश्किल हो गया है। बर्बर बलात्कार, स्त्रियों पर तेज़ाब फेंके जाने, बलात्कार के बाद ख़ौफनाक हत्याओं जैसी घटनाएँ आम हो गयी हैं। आखि‍र क्या कारण है कि ऐसी अमानवीय घटनाएँ दिन प्रतिदिन बढती जा रही हैं? इस सवाल को समझना बेहद जरुरी है क्योंकि समस्या को पूरी तरह समझे बगैर उसका हल निकाल पाना संभव नहीं है। अक्सर स्त्री-विरोधी अपराधों के कारणों की जड़ तक न जाने का रवैया हमें तमाम लोगों में देखने को मिलता है। इन अपराधों के मूल को ना पकड़ पाने के कारण वे ऐसी घटनाओं को रोकने के हल के तौर पर कोई भी कारगर उपाय दे पाने में असमर्थ रहते हैं। वे इसी पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर ही कुछ कड़े क़ानून बनाने, दोषियों को बर्बर तरीके से मृत्युदण्ड देने आदि जैसे उपायों को ही इस समस्या के समाधान के रूप में देखते हैं। इस पूरी समस्या को समझने के लिए हमें इसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि सभी कारणों की पड़ताल करनी होगी, तभी हम इस समस्या का सही हल निकालने में समर्थ हो पाएंगे।

अगर आँकड़ों पर ध्यान दिया जाये तो हम पाते हैं कि ऐसी बर्बर घटनाएँ खास तौर पर पिछले दो दशकों में अभूतपूर्व गति से बढ़ीं हैं। इसका कारण यह है कि 1991 से आयी नयी आर्थिक नीतियों की वजह से भारत में एक ऐसा नवधनाढ्य परजीवी वर्ग पैदा हुआ है जो लगातार आर्थिक और राजनीतिक रूप से बेहद मज़बूत हुआ है। गाँवों में धनी कुलक और फार्मर, और शहरों में प्रॉपर्टी डीलरों, शेयर बाज़ार के दलालों, छोटे उद्योगपतियों,तरह-तरह के कमीशनखोर, सट्टेबाजों का एक पूरा परजीवी वर्ग तैयार हुआ है जो बैठे बैठे ही बेतहाशा पैसे लूट रहा है। यह वर्ग इस तरह की बर्बर घटनाओं को खुलकर अंजाम दे रहा है क्योंकि क़ानून, सरकार आदि को यह जेब में रखता है और बेख़ौफ़ होकर स्त्री-विरोधी अपराध कर रहा है। एक दूसरा वर्ग भी है जो इसी नवधनाढ्य परजीवी वर्ग द्वारा फेंके गये टुकड़ों पर पलता है। यह वर्ग है लम्पट टटपूंजिया और लम्पट सर्वहाराओं का वर्ग जो तमाम छोटे उद्योग-धंधों, दुकानों आदि में काम करता है, या ट्रांसपोर्टर और प्रॉपर्टी-डीलरों का चमचा होता है। यह वर्ग भी ऐसी पाशविक घटनाओं को अंजाम दे रहा है। यह वर्ग अपनी सर्वहारा चेतना से पूरी तरह कट चुका है। लोग अक्सर यह कहते और सोचते है कि ऐसी घटनाओं के ज़िम्मेदार ग़रीब मज़दूर होते हैं। यह पूरी तरह से गलत है। असल में ऐसी जिन घटनाओं का हवाला दिया जाता है उनमे ग़रीब मज़दूर नहीं बल्कि लम्पट सर्वहारा और लम्पट टटपूंजिया तत्व ही ज़िम्मेदार होते हैं जो अपने वर्ग से पूरी तरह कट चुके हैं। इस तरह यह साफ़ है कि ऐसी पाशविक घटनाओं के लिए मुख्य और मूल रूप से यह नवधनाढ्य वर्ग और इसके तलवे चाटने वाला लम्पट टटपूंजिया वर्ग ही ज़िम्मेदार हैं। ये इंसान होने की सारी शर्तें खो चुके हैं और पूर्णत: अमानवीय हो चुके हैं और मानव समाज में रहने के लायक नहीं हैं। इन घटनाओं के लिए सारी पुरुष आबादी को ज़िम्मेदार ठहराना अतार्किक है भले ही उनमें से अधिकांश के ऊपर पितृसत्तात्मक मूल्यों का प्रभाव क्यों न हो।

ऐसी घटनाओं के लिए कौन मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है, यह जानने के साथ–साथ इस बात की भी जांच-पड़ताल करना ज़रूरी है कि आख़िर इस तरह के स्त्री-विरोधी मनोविज्ञान को कहाँ से खाद-पानी मिल रहा है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ पूँजीवादी विकास बेहद मंथर गति से और क्रमिक प्रक्रिया में हुआ है। यहाँ पूँजीवाद प्रबोधन और पुनर्जागरण की विरासत से कटा हुआ और बगैर किसी क्रन्ति के आया है। इस कारण से यहाँ के मानस में जनवादी मूल्यों का अभाव है। जिस तरह से अधिकतर यूरोपीय देशों में पूँजीवाद सामन्तवादी मूल्य-मान्यताओं से निर्णायक विच्छेद करके विकसित हुआ और उसने जनवाद की एक ज़मीन तैयार की, लेकिन भारत में उस तरह से यह विकसित नहीं हुआ। यहाँ पूँजीवाद तो आया लेकिन वह अपने साथ पूँजीवाद की कोई अच्छाई लेकर नहीं आया। पूँजीवाद की तमाम बुराइयाँ अवश्य ही भारत में आयी, इस तरह से यहाँ एक ऐसी पूँजीवादी व्यवस्था सामने आयी जिसने सामंती मूल्यों से निर्णायक विच्छेद नहीं किया। भारतीय समाज में पतनशील पूँजीवादी संस्कृति के साथ-साथ सामंती मूल्यों का भी प्रभाव है। जहाँ एक ओर खाप पंचायतें और फ़तवे जारी करने वाली ताकतें मौजूद हैं, वहीं दूसरी और पूँजीवादी मीडिया द्वारा परोसी गयी बीमार मानसिकता भी मौजूद है। एक तरफ घोर स्त्री-विरोधी पाखण्डी बाबाओं की एक पूरी जमात है जो तमाम घिनौने स्त्री-विरोधी अपराधों को अंजाम देती हैं, दूसरी तरफ हनी सिंह जैसे घृणित “कलाकार” भी हैं जिन्होंने नौजवानों में स्त्री-विरोधी मानसिकता पैदा करने का ठेका ले रखा है।

पूँजीवाद की यह विशेषता होती है की वह हर चीज़ को माल बना देता है और मुनाफा कमाने के लिए किसी भी हद तक जाता है। पूँजीवाद के कारण पैदा हुए ऐन्द्रिक-सुखभोगवाद, रुग्ण और हिंसक यौनाचार और स्त्रियों को एक माल के रूप में देखे जाने को पूँजीपतियों ने मुनाफा कमाने के लिए ग्लोबल सेक्स बाज़ार की सम्भावना के रूप में देखा है। पोर्न फिल्मों, सेक्स खि‍लौनों, बाल-वेश्यावृत्ति, विकृत सेक्स, विज्ञापनों आदि का एक कई हज़ार खरब डॉलर का भूमंडलीय बाज़ार तैयार हुआ है। मुनाफा कमाने के लिए पूँजीपति वर्ग आम मध्यवर्गीय किशोरों-नौजवानों और ग़रीब मेहनतकश जनता तक में विभिन्न संचार माध्यमों के ज़रिये रूग्ण-मानसिकता परोस रहा है। यह एक ओर तो पूँजीपतियो को ज़बरदस्त मुनाफा देता है, वहीं दूसरी ओर क्रान्तिकारी सम्भावनाओं को नष्ट करने के लिए मज़दूर बस्तियों और आम नौजवानों को टारगेट करने के हथियार के रूप में भी पूँजीपतियों ने इसको देखा है। पितृसत्ता जो समाज में पहले से ही मौजूद थी, उसे पूँजीवाद ने नए सिरे से खाद-पानी दिया है और मज़बूत बनाया है। स्त्रियों को माल के रूप में प्रोजेक्ट करके पूँजीवाद ने बर्बरतम स्त्री-विरोधी अपराधों के लिए एक ज़मीन तैयार की है। विकसित पूंजीवादी देश भी स्त्री-विरोधी अपराधों से अछूते नहीं हैं। वहाँ सामंती मानसिकता के कारण होने वाले ऑनर-किलिंग आदि जैसे अपराध तो नहीं होते लेकिन पूँजीवादी संस्कृति ने जो भयंकर अलगाव, व्यक्तिवाद और बीमार मानसिकता पैदा की है, उसके कारण वे भी स्त्री-विरोधी अपराधों में पीछे नहीं हैं। स्वीडन जैसे विकसित पूंजीवादी देश ने वर्ष 2012 में यौन-हिंसा और बलात्कार का रिकॉर्ड कायम किया। अगर आबादी के हिसाब से देखा जाये तो स्वीडन में भारत से 30 गुना अधिक स्त्री-विरोधी अपराध होते हैं। ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका भी यौन हिंसा के मामलों में पीछे नहीं हैं। अमेरिका में हर वर्ष 3 लाख से भी अधिक महिलाएं यौन हिंसा का शिकार होती है। देखा जाये तो पूँजीवाद ने सार्वभौमिक स्तर पर स्त्री-विरोधी अपराधों को बढाने में घृणित भूमिका अदा की है।

ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या पूँजीवाद की चौहद्दी के भीतर स्त्री-विरोधी अपराधों को ख़त्म करना और स्त्री-विरोधी मानसिकता से छुटकारा पाना संभव है? हमारा मानना है कि यह कत्तई भी संभव नहीं है। जो लोग यह समझते हैं कि ऐसी घटनाओं को कुछ सख्त क़ानून बनाकर या पुलिस को और अधिक चाक-चौबंद करके इन घटनाओं को रोका जा सकता है, वो पूरी समस्या को नहीं समझ पाते हैं। हर कोई पुलिस-थानों में हुई बर्बर बलात्कार की घटनाओं से परिचित है, हर कोई न्यायधीशों द्वारा दिए गये स्त्री-विरोधी फैसलों से परिचित है। जो ताकतें इन अपराधों के लिए मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं वह पुलिस और न्याय-व्यवस्था को अपनी जेब में रखती हैं। यही कारण है की 74 प्रतिशत स्त्री-विरोधी अपराधों के मुकदमों में आरोपी खुलेआम बरी हो जाते हैं।  (हालाँकि इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि मौजूदा व्यवस्था के समूल नाश होने तक हमे सारे स्त्री-अधिकार आन्दोलन स्थगित कर देने चाहिये, निश्चित ही हमें कड़े कानूनों की मांग भी उठानी चाहिये) बुर्जुआ नारीवाद भी इस समस्या का हल दे पाने में नाकाम है। जो संगठन या व्यक्ति इसी व्यवस्था के भीतर नारी-मुक्ति का स्वप्न देखते हैं वो पूँजीवाद के उन कारकों को नहीं देख पाते जो लैंगिक असमानता और स्त्रियों की ग़ुलामी को बल देते हैं। वो कभी भी मज़दूर महिलाओं के साथ कार्यस्थलों पर हुए यौन-उत्पीडन पर आवाज़ नहीं उठाते। महिला मज़दूरों को पुरुषों के बराबर काम करने पर भी पुरुषों से कम मजदूरी मिलती है और उसे सबसे निचली कोटि की उजरती ग़ुलाम के रूप में खटाया जाता है, इस असमानता पर भी वे कभी आवाज़ नहीं उठाते। इस तरह से वे केवल “इलीट” वर्ग की महिलाओं की मुक्ति को ही एजेंडे पर रखते हैं, हालांकि उनकी मुक्ति भी इस व्यवस्था में संभव नहीं है।

तो सवाल उठता है कि ऐसे माहौल में जहाँ तमाम “जनप्रतिनिधि” स्त्री-विरोधी बयान देते नहीं थकते (कि स्त्र‍ियाँ स्वयं इन अपराधों की ज़िम्मेदार हैं!) और अपनी घृणित ग़ैर-जनवादी नसीहतें देते नहीं अघाते (स्कर्ट नहीं पहननी चाहिये!, शाम को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिये!, मोबाइल फ़ोन नहीं रखना चाहिये!) वहां आख़िर इस समस्या का समाधान क्या हो और प्रतिरोध का रास्ता क्या हो। यह हम ऊपर देख चुके हैं कि मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर इस समस्या का कोई पूर्ण समाधान नहीं है लेकिन इसका यह मतलब कत्तई नहीं है कि जब तक पूँजीवाद का नाश नहीं होता तब तक स्त्रियों पर हो रही दरिन्दगी के ख़ि‍लाफ़ आवाज़ ही न उठायी जाये। पितृसत्ता के ख़ि‍लाफ़ हमें संघर्ष छेड़ना ही होगा। हमें यह भी समझना होगा कि पितृसत्ता अपने आप में कोई अपरिवर्तनीय चीज़ नहीं है। आज जब हम पितृसत्ता की बात करते हैं तो ये समझना होगा कि आज के समाज में यह पूँजीवादी पितृसत्ता है क्योंकि इसका स्वरुप सामंती पितृसत्ता से भिन्न है। सामंती समाज में स्त्री भोग की वस्तु थी लेकिन पूँजीवाद ने स्त्री को उपभोग की वस्तु बना दिया है। स्त्रियों को पूँजीवाद ने माल बना दिया है और इसीलिए जब हम पितृसत्ता से लड़ने की बात करेंगे तो हमें ध्यान रखना होगा कि इसका समूल नाश भी पूँजीवाद के खात्मे के साथ ही होगा। तब तक हमें पूंजीवादी स्पेस में भी स्त्रियों के अधिकारों के लिए संघर्ष लगातार जारी रखना होगा। और यह भी निश्चित है कि पूँजीवाद का खात्मा भी स्त्रियों को साथ लिए बगैर नहीं हो सकता क्योंकि स्त्री क्रान्तिकारी ताकतों की आधी आबादी है और चूँकि यह सबसे अधिक उत्पीडित है इसलिए आज हमें अपना पूरा ज़ोर स्त्रियों को क्रान्तिकारी ताकतों के इर्द-गिर्द गोलबंद करने में लगाना होगा। आज नौजवानों, महिलाओं, मेहनतकशों, छात्रों को एकजुट होकर पूँजी की संगठित ताकत को चुनौती देनी होगी। केवल पूँजीवाद के खात्मे के बाद ही नारी-मुक्ति का स्वप्न पूरा हो सकता है।

लव जिहाद:हिन्दू लड़की से किया निकाह मुट के बाद अपनी बीवी की आखिरी इच्छा की पूरी।

आज कल लव जिहाद का बड़ा बोलबाला है ये लोग जो आज प्रेम विवाह पर आपत्ति उठा रहे है ये प्रथा सदियो से चली आ रही है हम बात कर रहे है ऐसे मुस्लिम युवक की जिसने 36 साल पहले अपनी हिन्दू बीवी की आखिरी इच्छा पूरी की और उसे हिन्दू रीती रिवाज अनुसार देहेंन कर दिया,वैसे तो उनकी बीवी उम्र में उनसे इक साल बड़ी थी और हिन्दू धर्म से थी पर मोहब्बत कहा किसी मज़हब को मानती है उन्होंने सबके विरोध के बावजूद भी निकाह किया और अपनी ज़िन्दगी अच्छे से गुज़ारी लोगो के मुह पर ताला लग गया जब उस मुस्लिम युवक ने अपनी हिन्दू बीवी का अंतिम संस्कार किया और लव जिहाद को फिर से सही तेहरा दिया।

नोट,  इस वेबसाइट से जुड़कर समाज सेवा करने हेतु आप इसके एडिटर (मोहम्मद ज़ाहिद) से संपर्क कर सकते है।मोबाइल नंबर--9528183002

आमिर खान को नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय को धमकाया गया है।

ये किसी इक इंसान को दी गयी धमकी नहीं बल्कि पुरे अलसांख्यिक समुदाय को दी गयी चेतावनी है,जो की बर्दास्त नहीं की जा सकती।
राज्यसभा में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के ‘आमिर ख़ान’ पर दिए विवादस्पद बयान को लेकर सोमवार को जमकर हंगामा हुआ. 30 जुलाई को आयोजितपुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षामंत्री ने आमिर खान का नाम लिए बिना उन्हें सबक सिखाने की बात कही थी. इस पर विपक्ष के कुछ सांसदों ने पर्रिकर के लिए कहा कि ‘वह रक्षामंत्री हैं, रक्षा कहा हैं.राज्यसभा में कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि इस देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए. जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव ने कहा ये पूरे समुदाय को धमकाने की बात है. पर्रिकर देश के रक्षा मंत्री है, इस तरह के बयान से वो किसकी रक्षा कर रहे हैं.”मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ”कल क्या आप मुझे डराएँगे, क्या आप कहेंगेकि इसका सामाजिक बहिष्कार करेंगे. ये कैसे रक्षा मंत्री है. ये किसकी रक्षाकर रहे हैं. ये रक्षा मंत्री होते हुएअसुरक्षा फैला रहे हैं.”बसपा प्रमुख मायावती ने कहा, जब से केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी है देश में धार्मिक अल्पसंख्यक ख़ासकर मुसलमानों को निशाना बनाया गया. अब दलितों को पूरे देश में निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को सदन में आकर इस पर बयान देना चाहिए और अपने मंत्रियों पर लगाम भी लगानी चाहिए. मायावती ने आगे कहा कि अगर प्रधानमंत्री इस विषय पर नहीं बोलते हैं, तो यह माना जाएगा कि मंत्री उनकी शह पर बोल रहे हैं.समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव नेकहा, मैंने वीडियों देखा है. यह सीधे-सीधे अल्पसंख्यकों को धमकाने कीबात है. तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने सांप्रदायिक हिंसा का मुद्दा उठाया और आरोप लगाया कि ‘एक-दो बार की हिंसा तो ग़लती हो सकती है लेकिन अब ऐसा लगता है कि ऐसा किसी फैसले के तहत हो रहा है.’हालांकि पर्रिकर ने राज्यसभा में कहाकि ‘सदस्य पहले वीडियो देखें उसके बादही किसी भी तरह के फैसले पर पहुंचे.’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘मैंने किसी का नाम नहीं लिया और न ही किसी को धमकाया.’

इस देश में क्रांति की शुरुवात है दलित विध मुस्लिम का महमिलाप।


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लगता है जैसे इस मुद्दे को उठाने के बाद अब मुस्लिम दलित इक साथ इक मंच पर नज़र आने वाले है अगर ऐसा हुआ तो पहले उत्तर परदेश फिर पुरे भारत वर्ष में इक नए युग की क्रांति का अनावरण होने जा रहा है।
मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया यानी एमएसओ के राष्ट्रीय महासचिव शुजात अली क़ादरी ने बहुत क्रांतिकारी आइडिया रखते हुए बताया कि एमएसओ‘वॉटर विद दलित’अभियान की आजसे शुरूआत करने जा रही है जिसमें हम दलितों के पास जाकर उनका जूठा पानी पिएंगे। क़ादरी ने कहाकि दरअसल दलितों और मुसलमानों पर अत्याचार की जिस नीति पर सरकार और उनके समर्थक कर रहे हैं उसका प्रतिरोध एकता से ही किया जा सकता है। इसके तहत एमएसओ हर शहर-गाँव में दलित बस्तियों में जाकर दलितों का जूठा पानी पीने का अभियान शुरू कर रहे हैं। इस अभियान की वीडियोभी बनाए जाएंगे जिन्हें सोशल मीडिया पर‘वॉटर विद दलित’के नाम पर प्रसारितकर हम ना सिर्फ़ दलितों के प्रति भाईचारे और इस्लाम के‘एक आदम की संतान’के संदेश को मज़बूत करेंगे बल्कि हम गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और देश के दूसरे राज्यों में दलितों पर संघपरस्त हिन्दू दक्षिणपंथियों के मंसूबों को मुँहतोड़ जवाब देंगे। शुजात अली क़ादरी ने विश्वास जताया कि पूरे भारत में क़रीब 10 हज़ार एमएसओ के सूफ़ी मुस्लिम विद्यार्थी दलितों को जूठा पानी पीकर‘वॉटर विद दलित’अभियान को कामयाब करेंगे और यह क्रम उत्तर प्रदेश में चुनाव तक चलता रहेगा ताकि जिस प्रकार आज़मगढ़ में मुसलमानों और दलितों के बीच ग़लतफ़हमी पैदा की गई, ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।बहुत क्रांतिकारी होगा‘वॉटर विद दलित’–इमरान रजवीपश्चिम बंगाल यूनिट के इमरान रजवी ने संगठन के महासचिव शुजात अली क़ादरी के‘वॉटर विद दलित’अभियान को शानदार और क्रांतिकारी आइडिया बताते हुए इस पर फ़ौरन अमल करने की सलाह दी। उन्होंने कहाकि इस्लामी मान्यता अनुसार सब बाबा आदम की संतान है और इसआधार पर जाति और धर्म के आधार पर मानवके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता लेकिन यह भी सत्य है कि समाज में यह भावना है। इसे समाप्त कर दलितों के साथ भाईचारा जताने के लिए शुजात अली क़ादरी ने जिस‘वॉटर विद दलित’अभियान का आइडिया दिया है वह भारत, मुसलमान, दलित, इस्लाम और समाज के हित में है।बाबासाहेब अंबेडकर ने दी धार्मिक स्वतंत्रता- हमदानीगुजरात प्रदेश की एमएसओ कार्यकर्ता अब्दुल कादिर हमदानी ने कहाकि बेशक भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के बाद जो मुसलमान भारत में रुक गए उन्हें नहीं मालूम था कि भारत का संविधान कैसा होगा। लेकिन चूँकि मुसलमान जानते थे कि जिस संविधान की ज़िम्मेदारी बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के हाथों में है, वहाँ उन्हेंधार्मिक स्वतंत्रता अवश्य मिलेगी। मुसलमानों की उम्मीद को ही नहीं बल्कि देश के सभी अल्पसंख्यकों की उम्मीदों को बाबासाहेब ने पूरा किया।उन्होंने कहाकि पाकिस्तान साम्प्रदायिक आधार पर बना एक देश था जो फेल हो गया लेकिन बाबासाहेब के आइडिया पर भारत धर्म निरपेक्ष राज्य बना जिसमें दी गई धार्मिक स्वतंत्रतापर हमें गर्व है।इन मुद्दों पर भी हुई चर्चामुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया यानी एमएसओ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे, दलित के साथ मिलकर कार्य करने के अलावा नौकरियो में आरक्षण, बढ़ता हुआ कट्टरवाद और जाकिर नाईक और वहाबी संस्थाओ पर प्रतिबंध लगाने आदि मुद्दों पर भी चर्चा की।



बाबा रामदेव ने उगला ईसाइयो के खिलाफ ज़हर,विवादित बयान से लोगो में आक्रोश

ईसाई लोगो के खिलाफ जमकर ज़हर उगला योग गुरु रामदेव बाबा ने,अपने अड़ियल स्वभाव की वजह से जाने जाने वाले बाबा ने तंज कस्ते हुए ईसाइयो को ये कह दिया के इन्होंने अपने ऑफिस खोल रखे है दूसरे धर्म के लोगो को अपने धर्म में लाने के लिए।
विवादों में बने रहने वाले योग गुरु रामदेव ने अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय कोलेकर एक विवादित बयान दिया हैं जिसके बाद माना जा रहा हैं कि ये बयान एक बड़ा विवाद खड़ा सकता हैं.मंगलवार को रामदेव ने ईसाईयों पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए कहा कि साइयों ने परोपकार किये हैं लेकिन साथ ही धर्मांतरण की गतिविधियों में भी शामिल रहे जबकि हिन्दुओं ने इस तरहकी चीजों से परहेज किया. एक कार्यक्रमके उद्घाटन के अवसर पर अपने संबोधन में उन्होंने दावा किया, ”वे लोग सेवाकरते हैं, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाते हैं, इसके साथ ही वे धर्मांतरण भी करते हैं.रामदेव ने आगे कहा कि हम लोग योग सिखाने सहित अन्य सेवाएं निशुल्क करते हैं लेकिन हम लोगों ने किसी का मजहब नहीं बदला बल्कि उनका जीवन बदला.लोग अक्सर ईसाइयों से परोपकार सीखने को कहते हैं लेकिन लाखों हिन्दू साधु और चैरिटेबल ट्रस्ट इसी तरह की सेवाएं प्रदान करते हैं.

ईसाई और मुस्लिमो पर किया गया विवादित टिप्पणियाँ:यहाँ पढ़िए

भारत की सरज़मी पर अब मुस्लिम समुदाय को ऐसा लगने लगा है जैसे गड़बड़ कहि भी हो छीटे उसी के दामन पर आएंगे,हाल ही में मुस्लिम के विरुद्ध विवादित बयान दिया गया इस बार बीजेपी पार्टी नहीं बल्कि कांग्रेस के पूर्व राज्य मंत्री और केरल कांग्रेस
के नेता आर बालकृष्णा पिल्लई द्वारा मुस्लिम और ईसाई समुदाय पर अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद पुलिस ने उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी है.अपने गृहनगर कोलल्म जिले में अगड़ी जाति के नैयर समाज के लोगों को संबोधित करते हुए पिल्लई ने नमाज के लिए लाउड स्पीकर का इस्तेमाल किये जाने पर मुस्लिम समुदाय के लिए आपतिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था. मुस्लिम संगठनों ने उनकी भावनाएं आहतकरने के चलते केसी (बी) के नेता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए.पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जांच के लिए उनका विवादित ऑडियो, वीडियो फुटेज देखी जा रही है. हालांकि उन्होंने  आरोपों से इंकार किया है.

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