एक अमेरिकी महिला नौसैनिक ने ईसाई धर्म त्याग कर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के पीछे कई कारण बताये । उन्हें लगा जैसे अल्लाह ने उनकी ज़िंदगी में किसी फ़रिश्ते को भेजकर उन तक ये सन्देश भेजा है कि इस्लाम ही उन्हें सुरक्षित और इज़्ज़त भरी ज़िंदगी दे सकता है ।इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद वे बताती हैं कि ‘मेरा नाम जीनेशा बिंगम (इस्लाम अपनाने के बाद जीनेशा बिंगम) है। मैं मोरमन कैथोलिक ईसाई धर्म में पैदा हुई। मैं पच्चीस साल की हूं। मैं अमेरिकाके लास वेगास शहर में जन्मी,पली बढ़ी और कॉलेज की पढ़ाई की।’मेरा पारिवारिक माहौल बेहद गंदा था। मेरे पिता अक्सर मुझे झिाड़कते और पीटते थे। मेरी मां मुझे उनके उत्त्पीडऩ से बचाने में लगी रहती थी। पिता मेरी मां की भी पिटाई करते थे। मेरे दादा यौनाचारीथे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे मुझे अपनी हवस का शिकार बना सकते हैं। मेरे दादा ने मेरी मां, मेरी बहिन और मेरे साथ बलात्कार किया।जब भी मेरे पिता शराब पीए हुए होते तो हम समझ लेते थे कि घर में हम में से कोई ना कोई जख्मी जरूर होगा। मेरे पिता मुझे लज्जित करने के लिए मेरे रिश्तेदारों और मित्रों के सामने बुरी तरह पीटते थे। मैं अक्सर सोचती ईश्वर मेरे साथ आखिर ऐसे क्यों होने दे रहा है। ऐसे उत्पीड़क और घुटनभरे माहौल में मैं बड़ी हुई। जब मैं चौदह साल की हुई तोमेरी मां हम भाई बहिनों को लेकर घर छोड़कर आ गई।जिस रात हम निकले हमारे पिता ने हमें गाड़ी से कुचलने की कोशिश की। पिता से छुटकारा लेकर हम पांचों एक महान शख्स की शरण में चले गए। उस शख्स नेहम भाई-बहिनों को अपनी संतान की तरह रखा। यहां हमें ऐसा लगा मानों हम ईश्वर की कृपा में आ गए। यह शख्स नास्तिक होने के बावजूद भला आदमी था।इस बीच मैंने हाई स्कूल पास किया और मैं नौ सेना में भर्ती हो गई। मैं छठी मेरीन बटालियन की एक टुकड़ी में रेडियो ऑपेरटर थी। यह बटालियन अमेरिकाकी सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित बटालियन होने के साथ ही खतरनाक जंग में हिस्सा लेने की काबिलियत रखती थी।हमारी बटालियन को मार्च 2008 में अफगानिस्तान केगार्मसिर में तालिबान से लडऩे के लिए भेजा गया। हमारी तालिबानियों से चार महीने तक जंग चलती रही। इसी जंग में हमारी एक साथी को गोली लगी। हमें आदेश मिला कि उस साथी की मदद की जाए ताकि उसे मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई जा सके।दोनों तरफ गोलीबारी के बीच हम अपने साथी को बचाने की कोशिश के बीच ही एक गोली मेरे चेहरे के नजदीक सेदनदनाती हुई गुजरी। गोली नजदीक से गुजरने से मुझे दो दिनों तक अपने बाएं कान से कुछ भी सुनाई नहीं दिया। मुझे लगा मानो मौत मुझे छूकर चली गई हो। हमारे टीम लीडर ने हमें बता रखा था कि युद्ध के मोर्चे पर किसी को भी नास्तिक नहीं रहना चाहिए। मैं गोलीबारी के बीच आगे बढ़ती रही और ईश्वर से प्रार्थना करती रही कि वह मेरी हिफाजत करे।हालांकि सच्चाई यह है कि उस वक्त ईश्वर में मेरी सच्ची आस्था नहीं थी। हम उस घायल नौसेनिक को स्टे्रचर पर लेकर आगे बढ़े। मैंने उस घायल सैनिक को देखकर महसूस किया मानो उसकी आत्मा उसके शरीर कोछोड़कर बाहर आ रही हो।उसकी बंद होती आंखों ने मुझे ऐसा ही कुछ एहसास कराया। कुछ देर बाद डॉक्टर ने उस सैनिक को मृत घोषित कर दिया। नजदीक से साथी सैनिक की मौत देखने के बाद मुझे यकीन हुआ कि हर शख्स के आत्मा होती है और ईश्वर पक्के तौर पर है। जंग बंद होने के बाद हमने अफगानिस्तान के बाशिंदों और उनके कल्चर को जानना शुरू किया।एक रोज वहां मैंने सुबह की शांति के बीच जो नजारा देखा, वह अनूठा, दिलचस्प और यादगार रहा। सूर्योदय से पहले सभी अफगानी और मेरी दुभाषिया नमाज में मशगूल थी। मैं उनकी इस इबादत पर गौर कर रही थी। इस इबादत से मैं प्रभावित हुई। मैंने अपनी दुभाषिए से इसके बारे में पूछा तो उसने मुझे इस्लाम के बारे में जो कुछ बताया, वह मुझे अच्छा लगा।मैं वापस अमेरिका लौट आई। अमेरिका आने पर मैं फिर से अपने परिवार वालों के साथ चर्च जाने लगी। चर्च का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ और मैंने यह कहते हुए चर्च जाना छोड़ दिया कि ईश्वर की प्रशंसा के लिए मुझे चर्च जाने की जरूरत नहीं है। जनवरी 2011 मेंमुझे सेना से छुट्टी मिल गई। क्लब-पार्टियों में जाना और मौज मस्ती करना मेरा शगल बन गया। मैं पार्टियों में मौज-मस्ती करने लगी। मैं हर तरह के नियम-कायदों से ऊपर थी।लॉस वेगास के एक क्लब में मेरे साथ एक बुरा हादसा पेश आया। मैंने शराब पी रखी थी। मेरे साथी क्लब से जा चुके थे। मैंने एक पुरुष से लिफ्ट ली जिसने मुझे और शराब पिलाई और मेरे साथ बलात्कार किया। मुझे कुछ होश न था। मुझे होश आया तो मैंने अपने घर के दरवाजे पर खुद को पाया। इस घटना से मैं बेहद दुखी और शर्मिंदा हुई।इस हादसे के बाद तो मेरा ईश्वर से भी भरोसा उठ गया और मैं उन लोगों से भी चिढऩे लगी जो ईश्वर में यकीनरखते थे। मैं आस्तिक लोगों से इस विषय पर विवाद करती कि ईश्वर का अस्तित्व है ही नहीं। मैं पूरी तरह नास्तिक हो गई और शराब के साथ ही ड्रग का भी सेवन करने लगी। पार्टियों में मौज-मस्ती पहले की तरह जारी रही। पड़ोस में एक बार और एक पार्टी के दौरान मेरे साथ बलात्कार की कोशिश हुई।इस बीच मैं नेवादा चली आई, इस उम्मीद से कि शायद यहां मैं खुद को बदल पाऊं, लेकिन मेरे यहां के दोस्तों का सर्किल भी नशेडिय़ों और नास्तिकों का था। मेरी नशे की लत बढ़ती ही गई। मैं अपने दोस्तों से ही मारपीट करने लगी। नशे का मुझ पर ऐसा असर होनेलगा कि एक बार तो मैं चार दिनों में सिर्फ तीन घंटेही सो पाई। एक बार तो लगभग नौ दिनों तक मैं जागती रही।मैं खुद को असहाय महसूस करने लगी। मुझे लगता ना तो कोई मुझे चाहता है, ना कोई मुझे किसी तरह का सहारा देता है। मैं हीन भावना से ग्रसित रहने लगी। इस सोच के चलते मैं लगभग एक हफ्ते रोती रही। मैंने सोचा क्यों न मैं बलात्कार पीडि़त गु्रप में शामिल होकर मदद हासिल करूं। इसी बीच एक तारस नाम की महिला से मेरी मुलाकात हुई। मानो ईश्वर ने उसे मेरी मदद के लिए भेजा हो।वह महिला अल्लाह में यकीन रखती थी। उसने मेरे से बात की, मुझे हौसला दिलाया और मुझे सबसे पहले मदद लेकर खुद को अच्छी तरह खड़ा करने के लिए तैयार किया। मैंने उससे अपने सैनिक जीवन और इस्लाम के बारे में भी चर्चा की। दरअसल उस वक्त तक मैं बेहद टूट चुकी थी और सोचती थी कि क्यों न मैं खुदकुशी करलूं। मेरी इस बिगड़ी हालत के चलते मुझो लॉस वेगास के हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा।हॉस्पिटल में मैंने अपनी दोस्त तारस का दिया हौसला और उससे हुई चर्चा के बारे में ठंडे दिमाग से सोचा। मैंने अपने सौतेले पिता से मेरे लिए कुरआन लाने के लिए कहा। मेरे पिता मेरे लिए कुरआन ले आए। मैंने हॉस्पिटल में ही कुरआन पढऩा शुरू कर दिया। कुरआन पढऩे से मुझो अच्छा महसूस होने लगा। मैं थोड़ी बहुत इबादत करने लगी। उसी अस्पताल में एक मुस्लिम कर्मचारी था जिसका नाम बशीर था।उसने जब मेरे कमरे पर लगे नोट- मुझे इबादत के लिए सुबह 4:20 बजे उठा दिया जाए- पढ़ा तो उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं मुसलमान हूं? मैंने उसे बताया किमैं कोशिश कर रही हूं मुसलमान बनने की। उसने मुझे कुरआन के कुछ अध्याय और नमाज पढऩे के तरीके से संबंधित कुछ किताबें दी। उसने मुझे नमाज पढ़ाना भी सिखाया। मैं अब बेहतर महसूस करने लगी।ड्रग्स लेने की आदत के कारण अस्पताल वाले मुझो हाईपावर की दवा नहीं देते थे, फिर भी मुझे एहसास होने लगा कि मैं अच्छी होती जा रही हूं। मैंने लॉस वेगास के इस्लामिक सेंटर को टेलीफोन किया और इस्लाम सीखने के लिए मदद चाही तो उन्होंने दो अद्भुत स्त्रियों शाहीन और ऐलीजाबेथ को मेरे पास भेजा।मैंने इन्हीं दोनों महिलाओं की उपस्थिति में इस्लाम अपना लिया। ये दोनों मेरे इस्लाम का कलमा पढऩे की गवाह बनीं। मैंने गवाही दी कि सिवाय एक अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं है और पैगम्बर मुहम्मद सल्ल.अल्लाह के बंदे और रसूल हैं। अविश्वसनीय रूप से उसी पल मैं खुद को बेहतर महसूस करने लगी।मैंने अपने आपको अल्लाह के सुपुर्द कर दिया। अब मैं इस्लामी पर्दा हिजाब पहनती हूं। अल्लाह की पनाह में आना मेरी जिंदगी में चमत्कार के समान हुआहै। मेरे पास अंग्रेजी अनुवाद वाला कुरआन है जिसे मैं पढ़ती हूं। मुझे तो यकीन भी नहीं हुआ कि अल्लाह ने सही राह दिखाने के लिए मुझे चुना। अब मेरे दिल को सुकून है। अपना पुराना अतीत से मैं अब उबर चुकी हूं। जिन लोगों ने मेरा शोषण किया था, मुझ पर जुल्म किया था, उन सबको मैंने माफ कर दिया है। मैंने उन लोगों के लिए दुआ भी की कि अल्लाह उनका मार्गदर्शन करे।अल्लाह को जान लेने के बाद उससे बड़ा कोई एहसास नहीं। अल्लाह की इबादत का समय मेरे लिए सबसे बेहतरवक्त होता है। पहले मैं सोचा करती थी कि धर्म तो कमजोरों के लिए होता है ताकि वे उसका सहारा ले सकें लेकिन अब मैं सोचती हूं कि अल्लाह के प्रति समर्पण के लिए हौसले और शक्ति की जरूरत होती है।इस्लाम अपनाने के बाद मैंने शराब पीना छोड़ दिया। सच्चरित्र रहती हूं। हिजाब पहनती हूं और इस्लाम की शिक्षा लोगों तक पहुंचाती हूं। मैं आपसे गुजारिश करती हूं कि आप मुझे मेरे गुजरे हुए वक्त के साथ न जाचें क्योंकि मैंने अल्लाह और उसकी श्रेष्ठ रचना को पहचान लिया है। अब मुझे मेरी जिंदगी का मकसद मिल गया है।आप सब बहिन भाइयों को मेरी यह कहानी बताने के पीछे मकसद यह बताना है कि आप कैसे भी हो, किस भी हालात में हो, अल्लाह आपका मार्गदर्शन करता है और आपको एकनेक इंसान बना देता है। मैं इसका जीता जागता उदाहरण हूं।मुझे उम्मीद है कि मेरी इस कहानी से सभी को अच्छा और नेक इंसान बनने की प्रेरणा मिलेगी। सब तरह की तारी फ अल्लाह ही के लिए है। अल्लाह से दुआ है कि वह हमारा मार्गदर्शन करे और हमें सीधी और सच्ची राह सुझाए और इस पर चलाए।इनपुट मुस्लिम वर्ल्ड से भी
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Sunday, 7 August 2016
एक हिंदू-मुसलमान का 'ख़ास' दोस्ताना,हमसे सीखो असली देश भक्ति।
गनी अंसारी,संवाददाता, बीबीसी नेपालीदुनिया के कई मुल्कों में दो अलग-अलग मज़हब के लोगों के बीच लड़ाई और हिंसा की ख़बरें लिखना और पढ़ना मेरा रोज़ का काम है. मैं मुस्लिम हूं और मेरा मीत एक हिंदू.करीब 24 साल पहले जब नेपाली समाज आज से भी ज्यादा रूढ़ीवादी और कम शिक्षित हुआकरता था उस वक्त हमारी (मैं गनी अंसारी और रामनारायण गुप्ता की) दादी मांओं ने हम दोनों के बीच एक ख़ास क़िस्म की दोस्ती करवाई थी. इस रिश्ते को नेपाली में मीत कहते हैं.उस वक़्त हम दोनों की धार्मिक मान्यताओं के बीच क्या फासले थे, ये ना मुझको पता था और ना ही रामनारायण को. कौन से मुल्क़ और कौन से मज़हब को मानने वाले परिवार में आपकी पैदाइश हो यह इंसान केवश की बात नहीं. हम एक इंसान के रूप में पैदा होते हैं लेकिन वक्त के साथ-साथ इंसानों के दरमियां दीवारें बनने लगती हैं. यहां पर इतनी भूमिकाएं लिखने की वजह यह है कि आज दो अलग मज़हब के इंसानों के बारे में मैं जो पढ़ता हूं और जो सुनता हूं वो मेरे और रामनारायण की सोच से बाहर की बातें हैं.जब हम दोनों एकसाथ होते हैं तो अक्सर बात करते हैं कि दुनिया के अलग-अलग मज़हबों को माननेवाले लोग हमदोनों की तरह होते तो यह दुनिया कितनी ख़ूबसूरत होती? मेरे मीत की दादी मां कहती थीं कि बचपन में मैं और रामनारायण एक जैसे दिखते थे. शायद हम दोनों में इस ख़ास क़िस्म की दोस्ती की वजह यही थी. मेरे मीत की दादी मां की गुज़ारिश क़बूल करते हुए मेरी दादी मां ने रज़ामंदी जताई कि हम दोनों को मीत बनाया जाए.जाति और मज़हब, किसी भी बात की परवाह ना करनेवाले इस रिश्ते की ख़ासियत भी यही है. यही तो वजह है कि हज़ारों देवी-देवताओं और एक अल्लाह को माननेवाले दो मासूम आपस में मीत बन गए. आज की तारीख़ में भी हमारे गांव में ऐसे कई लोग हैं जो मुसलमान का छुआ हुआ पानी नहीं पीते.ऐसे माहौल में भी हमारी अनपढ़ दादी मांओं ने मीत रिश्ता कराने का फैसला लिया था. ये याद करके आज भी फख्र से सर ऊंचा हो जाता है और दोनों के लिए दिल में बेहद इज़्ज़त आ जाती है. हमारी दादी मांएं बेशक धार्मिक सहिष्णुता और एक दूसरे की वजूद को स्वीकारने वाली थीं. पढ़ाई के सिलसिले में काठमांडू आने के बावजूद भी मैं हर होली और छठ त्यौहार के मौके पर रामनारायण के घर जाने की कोशिशकरता हूं और रामनारायण ईद और बकरीद के मौके पर मेरे घर आते हैं.करीब साढ़े दो दशक की हमारी दोस्ती रामनारायण की शादी के दौरान और भी ख़ास हो गई. कुछ दिन पहले ही मैं अपने व्यस्त रोज़मर्रा की ज़िंदगी से थोड़ा वक़्त निकालकर अपने गांव गया था. जब मेरे मीत रामनारायण को ख़बर मिली कि मैं शादी में शामिल होने के लिए अपने घर पहुंच गया हूं तो फौरन वो मुझेलेने आ गया.उन्होंने शादी के दिन पहनने के लिए मेरे लिए शेरवानी ख़रीद रखी थी. फिर रामनारायण के बड़े भाई के साले की बीवी ने मेरे हाथों में मेहंदी लगाने को कहा. शरमाते हुए मैंने कहा, "शादी मेरी है क्या जो मुझे मेहंदी लगाई जाएगी?" तब उन्होंने कहा कि आपको भी दूल्हे की तरह सजना होगा. फिर ज़िंदगी में पहली बार दोनों हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए राज़ी हुआ. फिर एहसास हुआ की रिश्तों की ख़ातिर कुछ बातें टाली नहीं जा सकतीं.मेहंदी लगाते वक्त हंसी मज़ाक का सिलसिला चलता रहा. रामनारायण ने कहा, "मीतजी अगर शादी करना हो तो बोलिएगा मेरी साली भी हैं उनमें किसी से एक ही मंडप में आप की भी शादी हो जाएगी." कभी रामनारायण कम और 'लज्जा नारायण' ज्यादा लगनेवाले अपने मीत की बातें सुनकर मैं तो चौंक गया. उसके एक दिन बाद मैं वही शेरवानी पहनकर बरात के लिए रवाना हुआ. मैं शादी की सारी रस्मों में शामिल हुआ.लेकिन पहले की तरह अब मैं रामनारायण के घर नहीं जा पाऊंगा क्योंकि उसकी बीवी मेरे सामने नहीं आ सकती.परंपरा यह है कि मीत की बीवी मीत के सामने नहीं आ सकती.हम दोनों के मज़हब में बहुत सारी अलग-अलग मान्यताओं के बावजूद हम सालों से एक हैं. नमाज़ से पहले देनेवाली अज़ान से ना कभी रामनारायण को चिड़चिड़ाहट हुई और ना हमारे गांव के राम मंदिर में घंटा बजने से मुझे कोई दिक्कत महसूस हुई. ऐसे संस्कार के लिए हम अपनी दादी मांओं को श्रेय देते हैं.लेकिन वक्त के साथ-साथ धीरे-धीरे मीत संस्कार ख़त्म होता जा रहा है. फिर दो अलग मज़हब वालों में ऐसा रिश्ता तो और भी दुर्लभ होने लगा है. लेकिन एक बात की खुशी है मुझे. वो यह कि मेरी नन्ही सी भतीजी की ऐसी ही ख़ास सहेली ब्राह्मण है. उन दोनों के इस रिश्ते में मैं रामनारायण और खुद के रिश्ते की झलकदेख पाता हूं.धीरे-धीरे ऐसा महसूस होने लगा है कि नेपाली समाज आत्मकेंद्रित, धर्म केंद्रित और जाति केंद्रित होता जा रहा है और ऐसे माहौल में लगता है कि जैसे धार्मिक सहिष्णुता और सहअस्तित्व की भावनाओं का दम घुटने लगा हो. अगर सदियों से चलती धार्मिक सहिष्णुता और सहअस्तित्व की भावनाओं को जारी ना रखा जाए तो बस यही कहने को रह जाएगा, कहाँ गए वो दिन? (बीबीसी रिपोर्ट)
ईसा मसीह अल्लाह का गुलाम, हम इसलिए करते हैं हत्याएं: ISIS
दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस ने अपनी मैगजीन दाबिक का नया अंक जारी किया है। इसमेंउसने जीसस को अल्लाह का गुलाम बताया है और ईसाइयोंको धमकाते हुए कहा है कि वे अपना धर्म छोड़ दें। मैगजीन में आतंकी संगठन ने यह दावा भी किया है कि वह पूरी तरह इस्लामिक है और उसने यह बताने की कोशिश की है कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म नहीं है।एनबीटी की एक खबर के मुताबिक, 'ब्रेक द क्रॉस' नाम से जारी दाबिक के पंद्रहवें संस्करण में आईएसआईएसने इस बात के कई कारण गिनाएं हैं कि क्यों वह विदेशियों से नफरत करता है और उनकी हत्याएं करता है। बतौर एक कारण उसने कहा, 'हम तुमसे नफरते करते हैं, इसका सबसे पहला और प्रमुख कारण यह है कि तुम लोग काफिर हो। तुम अल्लाह को खारिज करते हो।' अन्य कारणों के तौर पर उसने 'इस्लाम के खिलाफ अपराध', 'मुसलमानों के खिलाफ अपराध' और 'हमारी जमीन पर आक्रमण' की बात कही है।मैगजीन में कहा गया, 'जब तक जमीन की एक भी इंच हमारे कब्जे से बाहर है, हर मुसलमान के लिए जिहाद निजी दायित्व के तौर पर जारी रहेगा।' दाबिक के इस संस्करण में ज्यादा जोर इस बात पर दिया गया है कि जीसस, अल्लाह के गुलाम थे और उनको कभी भी सूली पर नहीं चढ़ाया गया था।इस मैगजीन की शुरुआत में ही आईएसआईएस ने हाल में हुए सभी आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ली है। इन हमलों में जर्मनी के विर्त्सबू , फ्रांस के नीस और अमेरिका के ऑरलैंडों में हुए हमले शामिल हैं। आईएसआईएस ने कहा कि इन हमलों को 'खलीफा के छुपे हुए सैनिकों ने अंजाम दिया था।'
हिजाब पहना तो मुस्लिम लड़की को नौकरी से निकाला
अमेरिका में कथित भेदभाव के एक मामले में एक युवा मुस्लिम महिला को डेंटल क्लिनिक से केवल इसलिए नौकरी से निकाल दिया गया कि वह हिजाब पहनकर आती थी। उसका नियोक्ता कार्यालय में 'तटस्थ माहौल' बनाए रखना चाहता था।वर्जीनिया के फेयरफेक्स काउंटी में फेयर ओक्स डेंटल केयर में डेंटल सहायक के तौर पर नौकरी में रखी गई नजफ खान ने बताया कि उसे नई नौकरी से हटा दिया गया क्योंकि वह कार्यालय में मुस्लिम हिजाब पहनती थी। नजफ ने एनबीसी वॉशिंगटन को बताया, 'मैं वाकई दुखी थी। जिस दिन यह हुआ मैं टूट गई।'उसने इंटरव्यू के दिन या शुरुआती कुछ दिनों में हिजाब नहीं पहना था। तीसरे दिन उसने हिजाब पहनने की सोची क्योंकि नजफ ने महसूस किया कि उसकी नौकरी बनी रहेगी और इसे पहनना उसकी आध्यात्मिकमा से जुड़ा है। उस दिन कार्यालय में डा चक जो ने उससे हिजाब हटाने को कहा। जो ने उससे कहा कि वह कार्यालय में एक तटस्थ माहौल बनाकर रखना चाहते हैं।नियोक्ता ने उससे कहा कि वह हिजाब हटा दे क्योंकि इस्लामी हिजाब से मरीजों को परेशानी होगी और वह अपने कार्यालय से धर्म को अलग रखना चाहते थे। खान ने बताया कि जो ने उसे अल्टिमेटम दे दिया कि यदि उसने हिजाब पहनकर काम किया तो उसकी नौकरी चली जाएगी।खान ने बताया, 'जब मैंने कहा कि मैं अपने धर्म से समझौता नहीं करूंगी तो उन्होंने मुझे बाहर का रास्ता दिखा गया और मैं चली आई।' जो ने कहा कि धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन की उसके कारोबार में अनुमति नहीं है क्योंकि वह इसे तटस्थ रखना चाहता है। यदि उसके कर्मचारी टोपी पहनना चाहते हैं तो स्वच्छता कारणों से यह सर्जिकल टोपी होनी चाहिए।
नमाज भी है योग, जो अंधा होने का ढोंग करें, उसका कोई इलाज नहीं : आदित्यनाथ
गोरखपुर। योगी आदित्यनाथ ने उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी के योग पर दिए बयान को सही ठहराते हुए कहा कि उनका बयान स्वागत योग्य है। योगी ने कहा कि योग और 'ओम' को विवादित बनाना वास्तविकता को न समझने को ही प्रदर्शित करता है, कुछ लोग इसे अनावश्यक साम्प्रदायिक मसला बनाने काप्रयास कर रहे हैं।आदित्यनाथ ने कहा कि उन्होंने बहुत अच्छी बात कही है। ओम-ओमकार इस सृष्टी की प्रथम धूनी है। तीन अक्षरों से मिलकर 'अ', 'ऊ' और 'म' से बना है। इसमें हमारे शरीर में स्थित चक्रों और अन्तःश्रावी ग्रन्थियों पर प्रभाव पड़ता है। इससे जुड़ी हुई विज्ञान की प्रदत्ती है। ईनाडु की रिपोर्ट के अनुसार योगी ने सलमा अंसारी के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने ठीक कहा कि नमाज जो पढ़ते हैं, नमाज की जो पांच क्रियाएं हैं, वह अपने आप में योग ही हैं, लेकिन समस्या यह है कि जो लोग समझे तो बात कही जाये, जो ना समझ है वो समझने का प्रयास नहीं करना चाहते हैं। योगी ने कहा कि आप रास्ता उनको दिखा सकते हैं जो सचमुच अंधा हो। जो अंधा होने का ढोंग करें, उसका कोई इलाज नहीं है। बता दें कि पिछले साल से 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। वहीं, बजरंग दल द्वारा कार्यकर्ताओं को हथियारों का प्रशिक्षण दिये जाने के सवाल पर योगी ने कहा कि, इसमें क्या बुराई है। मैं कहता हूं कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को सैन्य ट्रेनिंग देनी चाहिए, जिससे वह हर विपरीत परिस्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए काम कर सके।
गोहत्या के नाम पर तांडव करने वाले ये देखे:मन्नत पूरी होने पर दी जाती है बकरे की बलि,खून से होती है पूजा
गोरखपुर।चौरी-चौरा के देवीपुर में तरकुलहा देवी का मंदिर है। यहां मन्नत पूरी होने पर रामनवमी के दूसरे दिन से भक्त बकरों की बलि देते हैं। इसके बाद उससे निकलने वाले खून को देवी को अर्पित करते हैं और पूजा करते हैं। गर्दन और उससे नीचे के हिस्से के मीट को भक्त हांडी-भगौने में पकाते हैं और उसे मां के प्रसाद रूप में यहीं बैठकर परिवार के साथ खाते हैं।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यहां वजन के हिसाब से लोग बकरे को लेकर पहुंचते हैं। मंदिर में पूजा करने के बाद बकरे को नहलाने के बाद उसकी पूजा की जाती है। इसके बाद बकरे के सिर पर घर की कोई महिला धार (लोटे में भरा पानी) गिराती है। मंदिर के बगल में बने बेड़े में बकरे को ले जाया जाता है। दोनों पैरों को पकड़कर सिर को एक वार में धड़ से अलग कर दिया जाता है। धड़ को उठाकर दूसरी जगह ले जाया जाता है। सिर से निकल रहे खून को भक्त मां की पिंडीपर अर्पित कर देता है। बकरे के सिर को जानवरों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। एक बकरा काटने के लिए 11 रुपए से लेकर 51 रुपए भक्तों से वसूले जाते हैं।मान्यता है कि महाकाली के रूप में विराजमान जगराता माता तरकुलही पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इस पिंडी को क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह ने स्थापित किया था। कहा जाता है कि बंधू सिंह अंग्रेजों की बलि देने के बाद इसी पिंडी पर उनका खून चढ़ाते थे। ऐसा करने से उन्हें अलौकिक शक्ति का एहसास होता था।
‘यूपी के मुसलमान हर बार बेवकूफ नहीं बनेंगे’
नई दिल्ली। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि मौलाना नरेंद्र मोदी और मौलाना मुलायम सिंह यादव के बीच में फंस गए हैं। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा यूपी में जो कुछ हो रहा है वह भाजपा और सपा की मिलीभगत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि मुसलमान हर बार बेवकूफ नहीं बनेंगे ।उनसे पूछा गया था कि वे यूपी में ‘मौलाना’ मुलायम सिंह यादव से कैसे निपटेंगे? बता दें कि ओवैसी भी यूपी चुनाव 2017 के लिए अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं। वे मुसलमान और दलित वोटों के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरीओर, मुलायम हमेशा से खुद को मुसलमानों के हितैषी केतौर पर पेश करते रहे हैं।मुलायम से निपटने के सवाल पर ओवैसी ने कहा, ‘देखा जाए तो मैं मौलाना नरेंद्र मोदी और मौलाना मुलायम सिंह यादव के बीच फंस गया हूं। आखिर मोदी खुद को एकबड़े सूफी विचारक समझते हैं।जहां तक हमारी बात है, हम लोगों के पास मुस्लिमों और दलितों की तरक्की की बात लेकर जा रहे हैं। हम समाजवादी पार्टी के उन वादों का पर्दाफाश करेंगे जिनमें उन्होंने कहा था कि झूठे आरोपों में जेलों में बंद निर्दोष मुसलमानों को बाहर निकाला जाएगा।यूपी में काेेई तरक्की नहीं हुई है।’एसपी और बीजेपी में गुप्त समझौता हुआ है, ओवैसी अक्सर यह आरोप लगाते रहे हैं। इसकी वजह पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘एसपी और बीजेपी की आपसी रजामंदी अभी भी बनी हुई है। समाजवादी पार्टी की सरकार बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी को कार्यक्रम करने देती है, लेकिन मुझे इजाजत नहीं देती। यह खुद साबितकरता है कि कौन किसकी तरफ है। यहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह जनसभा कर सकते हैं, लेकिन मैं नहीं। बजरंग दल को हथियारों की ट्रेनिंग की इजाजत है, लेकिन मुझे बोलने की नहीं है।’
हिंदुओं की जनसंख्या कम होने की वजह बढ़ती नामर्दी- तोगड़िया
विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता प्रवीण तोगड़िया ने अपनी रैली में बड़ा अजीब और विवादित बयान दिया है। इसमें प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि हिंदुओं की जनसंख्या कम होने की वजह बढ़ती नामर्दी है। उन्होंने अपनी बनाई दवाई दिखाते हुए कहा कि हिंदू मर्दों को घर जाकर अपनी मर्दानगी की पूजा करनी चाहिए। जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार यह रैली गुजरात के बरुच जिले में हुई थी। प्रवीण तोगड़िया ने मुसलमानों से मुकाबला करने के लिए जनसंख्या बढ़ाने पर जोर भी दिया। उन्होंने कहा, ‘अब हिंदू घटेगा नहीं, बढ़ेगा, धर्मांतरण को ना और घर वापसी हो हां, लव जिहाद को ना और यूनिफॉर्म सिविल कोड को हां, बांग्लादेशी मुस्लिम को ना और हिंदू घरों में बच्चे पैदा करो।’ इसके बाद प्रवीण ने युवाओं को तंबाकू से दूर रहने की सलाह देते हुए कहा कि यह नामर्दी का सबसे बड़ी वजह है। डॉक्टर की पढ़ाई कर चुके तोगड़िया ने अपनीदवाई दिखाते हुए आगे कहा, ‘यह मेरी बनाई चीज है। यह 600 रुपए में मिलती है पर मैं यहां 500 में दे दूंगा। इसे ले जाकर अपनी पत्नी को देना और कहना की इसको आपके खाने में मिलाकर दे। आप शक्तिशाली बने रहेंगे और बच्चे पैदा करते रहेंगे।’ उन्होंने जंबुसर नाम के शहर में गायों को बचाने की मुहीम चलाने पर भी जोर दिया। वहां पर 30 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिमों की है। उन्होंने कहा, ‘अगर हम लोग अपनी जनसंख्या बढ़ा लेंगे तो जंबुसर में कोई गाय को काटने की हिम्मत नहीं कर पाएगा।’
विवादित बयान:मोदी के मंत्री बोले "हिंदू जैसा हिजड़ा तो कोई कौम ही नहीं है"
लखनऊ।भाजपा नेता और पीएम नरेंद्र मोदी के केंद्रीय राज्य मंत्री गिरिराज सिंह एक बार फिर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं। मंगलवार को कोबरापोस्ट ने एक वीडियो शेयर किया जिसमें गिरिराज सिंह कहते नजर आ रहे हैं कि "हिंदू जैसा हिजड़ा तो कोई कौम ही नहीं है."वीडियो में गिरिराज कहते नजर आ रहे हैं, " हिंदू…होता तो पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाता पटना में, एक एक ढेला मारकर मार देते. कुछ लड़के हैं जिनके पास सेंटिमेंट है, अभी कुछ लोग जीवित हैंजिनके पास सेंटिमेंट है. देश में केवल 20 प्रतिशत लोग हैं जिनके पास सेंटिमेंट है. वो आगे कहते हैं कि अगले 20 सालों में हिंदुओं की और दुर्गति होगी।
पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने कहा था किजिस देश में रहो, उससे मुहब्बत करो
राजीव शर्मा, कोलसिया।हमने दुनिया का नक्शा बनते आैर बिगड़ते देखा है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब हिंदुस्तान के सीने पर भी परदेसी फौज के घोड़ों कीटापें सुनार्इ देती थीं। हमने उन लोगोंके किस्से भी किताबें में पढ़े हैं जिनकी तलवारें सिर्फ बेकसूर लोगों के खून से प्यास बुझाती थीं।मैं इतिहास में सबकुछ जानने का दावा नहीं कर सकता लेकिन जितना जान सका हूं उसके आधार पर मुझे अतीत में दो महान घटनाएं एेसी नजर आती हैं जब विजेता ने लाशों पर फतह नहीं पार्इ, अपनी जीत का जश्न नहीं मनाया आैर किसी कमजोर का गला नहीं दबाया। बल्कि युद्घ जीतकर भी उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया।पहली घटना है- श्रीराम की लंका पर विजय। उस लंका परजिसके बारे में कहा जाता है कि वह सोने से बनी थी। तब श्रीराम के पास विशाल सेना थी, बहादुर साथी थे आैर हथियारों की भी कोर्इ कमी नहीं थी लेकिन उन्होंने जीती हुर्इ लंका विभीषण को सौंप दी।वे चाहते तो लंका के राजा बन सकते थे। वहां आराम कीजिंदगी गुजार सकते थे लेकिन उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि मुझे मां के कदमों की मिट्टी आैर मेरी मातृभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा प्रिय हैं।दूसरी घटना है पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन की। हिजरत के कर्इ साल बाद वे मदीने से मक्का आए थे। एक वह दौर था जब मक्का के लोग उनकी जान के प्यासे हो गए। तब भी उन्होंने युद्घ का मार्ग नहींअपनाया।उनके चाचा अबू तालिब गुजर चुके थे, उनकी बीवी खदीजाका भी स्वर्गवास हो चुका था। मां आैर बाप ताे बहुत पहले गुजर चुके थे। वे बिल्कुल अकेले पड़ चुके थे तब मक्का के कुरैश उनसे बदला लेने काे तैयार हुए। वे हर कीमत पर उनकी जान लेने को आमादा थे।एेसे में पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) को अपने रब की आेर से हुक्म हुआ आैर वे मक्का छोड़कर शांतिपूर्वक मदीना चले गए। मदीना के लोगों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया मगर मक्का के कुरैश यहभी नहीं चाहते थे।उनकी मंशा थी कि मुहम्मद (सल्ल.) को खत्म कर दिया जाए। वे फौज लेकर मदीना की आेर चल पड़े तब अपने साथियों, उनके बीवी-बच्चों आैर आत्मरक्षा के लिए पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने रणभूमि की आेर प्रस्थान किया तथा वे विजयी हुए।मक्का के लोगों ने उनके साथ जितना दुष्टता का बर्ताव किया था मदीना के लोग उतने ही हमदर्द थे। उन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया आैर कोर्इ भी संकट वे सबसे पहले खुद पर लेना चाहते थे लेकिन मुहम्मद साहब (सल्ल.) को खुद से ज्यादा अपने साथियों की फिक्र रहती।मुहम्मद (सल्ल.) को मक्का की धरती से भी बहुत प्रेमथा। यही वो जगह थी जहां उनकी प्यारी मां आमिना, पिता अब्दुल्लाह के कदम पड़े थे। इसी धरती पर काबाथा जहां इबादत करना उनका सबसे बड़ा खाब था।… आैर अपनी मातृभूमि किसे अच्छी नहीं लगती? मदीने में उन्हें वैसी तकलीफ नहीं थी जैसी मक्का के लोगों ने दी थी। फिर भी उनका मन हमेशा वहां जाने केलिए उत्सुक रहता था।देशप्रेम क्या होता है? मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर देश में महान देशप्रेमीहुए हैं, अमर बलिदानी पैदा हुए हैं। मैं पैगम्बर मुहम्मद साहब (सल्ल.) को भी उसी श्रेणी का एक महान देशप्रेमी मानता हूं जिसने अपने वतन के लिए कर्इ कुर्बानियां दीं। उनके कर्इ साथी जंग में शहीद हुए।मक्का उनका घर था आैर वहां जाने का उन्हें पूरा हक था लेकिन कुरैश नहीं चाहते थे कि वे पूरी जिंदगी में कभी वहां लौटकर आएं। मुहम्मद साहब (सल्ल.) के पास संसाधन नहीं थे, बहुत बड़ी सेना नहीं थी, लेकिन वे सिर्फ दो बातों के दम पर मैदान में डटे रहे। न सिर्फ डटे रहे बल्कि दुश्मनों को शिकस्त भी दी। इनमें पहली बात थी – ईश्वर और उसकी न्यायप्रियता पर अटूट भरोसा, और दूसरी – सच्चाई।जब आप अपने बहादुर साथियों के साथ वापस मक्का आए तो उन लोगों में भारी भय था जिन्होंने आपको तकलीफें दी थीं। मक्का बिल्कुल सामने था और आप आगेबढ़ते जा रहे थे। उधर मक्का के लोगों के मन में कई आशंकाएं थीं।तब मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने एक व्यक्ति अबू सुफियान से कहा – अपनी कौम में जाओ और उनसे कहो – मुहम्मद मक्का में एक अच्छे भाई की तरह दाखिल होगा। आज न कोई विजयी है और न पराजित। आज तो प्रेम और एकता का दिन है। आज चैन और सुकून का दिन है। अबू सुफियान के घर में जो दाखिल हो जाए, उसे अमान (शरण) है। जो घर का दरवाजा बंद कर ले उसको अमान है और जो काबा में दाखिल हो जाए, उसको भी अमान है।अबू सुफियान ने यह बात मक्का में जाकर कही तो लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। मुहम्मद साहब (सल्ल.) मक्का में दाखिल हुए। फिर आपने काबा जाने का इरादा किया। काबा की चाबी मंगाई और आप काबा गए।काबा के बाहर मक्कावालों की भीड़ लगी थी। वे लोग आज अपनी किस्मत का फैसला सुनने खड़े थे। तब आपने कुरैशके लोगों की ओर नजर उठाई और पूछा, कुरैश के लोगो, जानते हो मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाला हूं?सब बोले- अच्छा व्यवहार। आप अच्छे भाई हैं और अच्छे भाई के बेटे हैं।फिर आपने फरमाया – आज तुम्हारी कोई पकड़ नहीं। जाओ, तुम सब आजाद हो।मुहम्मद साहब (सल्ल.) ने उन लोगों को आजाद कर दिया जिन्होंने कभी उन्हें बहुत तकलीफें दी थीं। आज आप शक्ति के शिखर पर थे, लेकिन उन लोगों को भी माफ कर दिया जो आपको दुनिया से मिटाना चाहते थे। युद्घ जीतकर दिल जीतने तथा शक्ति के साथ माफी के एेसे उदाहरण इतिहास में बहुत कम मिलते हैं।
तंगहाली में जिंदगी बसर कर रहे हैं क़ादर खान, परिवार नहीं करता देखभाल
पिछले 3 दशकों से बॉलीवुड फिल्मों के जरिए अपनी अदाकारी और संवाद लेखन का लोहा मनवा चुके क़ादर खान इस वक्त बेहद बुरे हाल में जी रहे हैं। 78 वर्षीय उम्दा कलाकार के परिवार के सदस्य उनकी ठीक तरीके से देख-भाल नहीं करते जिससे उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी पत्नी अज़रा खान और तीन बेटे सरफराज़, शहनवाज़ और कुद्दूस खान हैं लेकिन फिर भी क़ादर खान को देख-भाल के लिए नौकरों पर आश्रित रहना पड़ता है। जिससे उनकी तबियत ठीक नहीं रहती। गौरतलब है कि पिछले दिनों कादर खान की मृत्यु की अफवाहें भी उड़ी थी जिससे उनके फैन सकते में आ गए थे।क़ादर खान फिलहाल फौजिया अर्शी निर्देशित फिल्म ‘हो गया दिमाग का दही’ फिल्म कर रहे हैं। फौ़ज़िया खान ने अपने एक इंटर्व्यू में इस बात का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि क़ादर खान जैसे बड़े कलाकार की उनके परिवार के सदस्य अवहेलना कर रहे हैं। हालांकि फौज़िया खान कादर खान के साथ काम करने को लेकर काफी उत्साहित दिखाई दीं। कादर खान ने पिछली बार ‘मुझसे शादी करोगी’ फिल्म में काम किया था। इस साल की शुरुआत में अर्जुन कपूर अभिनीत फिल्म ‘तेवर’ से वापसी की जो बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई
मैं नुसरत साहब की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं- हुमा कुरैशी
बॉलीवुड अभिनेत्री अभिनेत्री हुमा कुरैशी ने कहा कि वह लोकप्रिय गायक नुसरत फतेह अली खान की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं। वह उनके ‘दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी’ पर आधारित नए गीत ‘दिल्लगी’ में दिखाई देंगी।'गीत ‘दिल्लगी’ के लांच पर हुमा से मूल गीत के बारे में पूछा गया। इस पर उन्होंने कहा, ‘‘बिल्कुल, मैंनेइसका मूल गीत सुना है। मैं नुसरत साहब की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं।’’कव्वालियों को लेकर प्रसिद्ध हुए पाकिस्तानी गायक का 1997 में निधन हुआ था।संगीतकार सलीम-सुलेमान ने राहत फतेह अली खान की आवाज में यह गीत दोबारा बनाया है। गीत में हुमा, विद्युत जामवाल के साथ दिखाई देंगी। इसके कोरियोग्राफर किरण दियोहंस हैं।हुमा ने कहा, ‘‘जब मुझे इसके बारे में बताया गया कि राहत साहब यह गीत गा रहे हैं और इसमें विद्युत हैं, तो मैंने इसके लिए तुरंत हां कर दी। मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा और किरण सर ने मेरा निर्देशन किया और मैंने उनसे कहा भी कि मैं खुश हूं कि आप शूटिंग कर रहे हैं क्योंकि मुझे पता है कि हम अच्छा कर रहे हैं।’’
इस एक्ट्रेस ने फिल्म के बदले किया 'जिस्म' से समझौता
बॉलीवुड में लंबे वक्त तक काम करने वाली हीरोइन टिस्का चोपड़ा ने इंडस्ट्री में फिल्म के बदले जिस्म से समझौता करने की एक सनसनीखेज कहानी बताई है। टिस्का ने अपने साथ हुए अनुभव को साझा किया है जिसमें डायरेक्टर के उन्हें रात को बुलाने और फिर उसके बाद बंद कमरे में जो हुआ वो पूरा अनुभव साझा किया।टिस्का ने 1993 में बॉलीवुड में शुरूआत की, फिल्म थी अजय देवगन की ‘प्लेटफॉर्म’। इसके बाद से वो लगातार फिल्में कर रही हैं लेकिन कभी भी वो मुख्य अभिनेत्रियों में शामिल नहीं हो सकीं। हमेशा साइडरोल ही उनके मिलते रहे। टिस्का ने एक कार्यक्रम में उस रात की कहानी बताई है जब उन्हें रात को डायरेक्टर ने कमरे में बुलाया। ये टिस्का के करियर का शुरूआती दौर था। क्या हुआ था उस रात टिस्का बताती हैं। ‘मुझे शुरू में सफलता मिली तो लगा कि अब करियर चल निकलेगा लेकिन कुछ ही दिन में मैंने पाया कि मेरे पास कोई काम नहीं हैं, मैं बिल्कुल खाली थी, काम की तलाश में थी कि एक दिन फोन जा दूसरी तरफ एक मशहूर निर्देशक थे’एक न्यूज़ पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार टिस्का बताती हैं ‘फोन पर मशहूर निर्देशक को पाकर मैं खुश थी, उन्होंने कहा कि तुम खाली हो तो मेरे पास क्यों नहीं आईं? खैर, मैं एक नई फिल्म बना रहा हूं और उसकेलिए हीरोइन की तलाश कर रहा हूं क्या तुम काम करोगी? खाली घर बैठे हों और नामी निर्देशक खुद कहेतो मना कौन कर सकता है. मैंने हां कहा तो उन्होंने कहा कल ऑफिस में आकर मिलो’टिस्का बताती हैं ‘मैं अगले दिन उसके ऑफिस पहुंची तो उसने मुझे देखकर कहा कि हील्स में कैसे चलते हैं यह तुम्हें सीखने की जरुरत है, मुझे लगा कि ठीक है कोई आदमी मुझमें दिलचस्पी दिखा रहा है. इसके बाद मैंने दोस्तों को बताया कि मैं फ्लां निर्देशक के साथ काम कर रही हूं तो सारे दोस्त नाक सिकोड़ने लगे, कहा कि तुम उसके साथ काम कर रही हो। मैंने कहा हां मैं कर रही हूं तो उन्होंने कहा कि तुम जानती हो’टिस्का ने बताया ‘दोस्तों ने कहा कि उस निर्देशक केसाथ काम करना मतलब शूट के दौरान उसके साथ कुछ भी करने को तैयार रहना होगा। मैंने कहा मुझ इस बारे में जानकारी नहीं है। मैं रातभर सोचती रही आखिर मैं फैसला किया जो होगा देखा जाएगा फिल्म तो करनी है लेकिन निर्देशक से कैसे बचूं?’‘मैंने सोचा की उसकी पत्नी से दोस्ती कर लेती हूं। मुंबई में शूटिंग शुरू हुई, सब ठीक चल रहा था। इसके बाद आउटडोर शूटिंग की बात आई और यहां से निर्देशक के अंदर का शख्स निकलना शुरू हुआ। शूटिंग के तीसरेदिन हमने कुछ अंतरंग सीन किए क्योंकि हीरो नहीं थातो उसने हीरो की शर्ट पहनी और शूटिंग की वो शूटिंग के सहारे मेरे साथ खूब चिपका, बाद में उसने मुझ से कहा शाम को मेरे रूम पर आना साथ में डिनर करेंगे औरस्टोरी पर चर्चा करेंगे। मैं समझ रही थी लेकिन मनातो कर नहीं सकती थी, होटल में हमारे कमरे भी एक ही फ्लोर पर थे। मैं सोच रही थी कि क्या करूं?’‘उस शाम बाकी की सारी क्रू ने बाहर डिनर खाने का प्लान बनाया था, लेकिन मुझे तो निर्देशक से मिलने जाना था। मैंने एक बड़ा सा बुके और ढेर सारी चॉकलेट खरीदी अच्छे से कपड़े तैयार होकर उसके दरवाजे पर पहुंची। मैंने दरवाजा खटखटाया तो पाया कि वो लुंगी पहने हुए बड़े रोमांटिक मूड में बैठे हैं। मैंने उसे चॉकलेट और बुके दिया साथ ही उसके गले लगकर धन्यवाद भी दिया। इससे पहले कि निर्देशक अपना असली रूप दिखात फोन बजा लाइन पर उसका बेटा था। मेरा प्लान काम कर रहा था’टिस्का आगे कहती हैं, ‘दरअसल, मैंने एक प्लान के तहतहोटल स्टॉफ से कहा था कि मेरे रूम के सारे कॉल उस निर्देशक के रूम पर शिफ्ट कर दें। मैंने फोन उठायातो उसके बेटे ने मुझसे पूछा कि डिनर के लिए बाहर चलना है तो मुझे कितनी देर लगेगी? मैंने उससे कहा कि मैं सर के रूम में हूं और स्टोरी पर चर्चा कर रही हूं। इसके बाद मैंने निर्देशक से पूछा सर, 10 मिनट लगेंगे या 15 मिनट काफी रहेंगे। इसके बाद पांच-छह कॉल और आ गए’‘जब निर्देशक के बेटे और टीम से कई लोगों के फोन आ गए और सबको मैंने कहा कि मैं निर्देशक के कमरे में हूं तो फिर उसका फितूर उतर गया और मैंने फिल्म पूरी की। मैंने सोच रखा था कि अगर ये प्लान कारगर ना रहा तो फ्लाइट पकड़ कर वापस आ जाना है।’ टिस्का ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि अब हीरोइनों को ज्यादा कास्टिंग काउच का शिकार नहीं होना पड़ता और इसकी एक बड़ी वजह ये है कि ज्यादातर कास्टिंग डायरेक्टर गे हैं।
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