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Monday, 22 August 2016

10 बच्चे पैदा करना आसान है उनको पालना नहीं,संघ प्रमुख मोहन भगवत पहले खुद पैदा करे:अरविन्द केजरीवाल।

नई दिल्ली।आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हिंदूओं के बच्चों को लेकर दिए बयान पर राजनीति जारी है।  एक तरफ जहां योगी आदित्यनाथ ने भागवत के बयान का समर्थन किया है वहीं दूसरी ओर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने तंज कसा है। केजरीवाल ने कहा है कि कि संघ प्रमुखपहले दस बच्चे पैदा करें, उन्हें पालकर दिखाएं, फिर बयान दें। आपको बता दें भागवत के हिंदुओं के बच्चों को लेकर दिए गए बयान पर आरएसएस ने सफाई दी है। आरएसएस ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है, “आरएसएस प्रमुख ने ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए नहीं कहा. आरएसएस प्रमुख के मुताबिक कानून किसी को भी ज़्यादा बच्चे पैदा करने से नहीं रोकता. कानून सभी के लिए सामान होना चाहिए.”स्पष्टीकरण में कहा गया है, “‘मोहन भागवत के कहने का मतलब था कि जनसख्या नियंत्रण के लिए सामान कानून होना चाहिए जो सभी पर लागू हो, ऐसा ही अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की अक्तूबर 2015 बैठक मेंएक प्रस्ताव भी RSS ने पास किया था.”आगरा में एक कार्यक्रम में कहा था कि दूसरे धर्म वाले जब इतने बच्चे पैदा कर रहे हैं तो क्या आपको किसी कानून ने रोक रखा है. संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि आप लोग कह रहे है कि ‘उनकी’ जनसंख्या बढ़ रही है इस पर उन्होंने कहा कि हिंदुओंको किसने रोका है.

कड़ी धुप में मुस्लिमो ने नमाज़ अदा करके की बारिश होने की दुआ।

महराजगंज।बारिश न होने से परेशान रूद्रापुर ग्राम सभा के मुसलमानो ने आज मदरसे पर दो रकात नमाज पढ़ खुदा से बारिश होने की दुआ मांगी। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में महिला,पुरुष व बच्चे नमाज पढ़े।पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश न होने से जहाँ एक तरफ लोग भीषण गर्मी से परेशान है वही किसान अपनी खेती को देख चिन्तित है। आज सुबह 9.30 बजे सिसवा विकास खण्ड के ग्राम रुद्रापुर के मुसलमानोने मदरसा खलीलिया मिस्वाउल ओलुम पर इकट्ठा हुए जिसे हाजी मौलाना इब्राहिम ने दो रकात नमाज पढ़ाई। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में महिलाये,पुरुष व बच्चे नमाज पढ़ खुदा से बारिश होने की दुआ मांगी।हाजी मौलाना इब्राहिम ने कहा की बारिश न होने से परेशान हम सभी खुदा से बारिश करने की दुआ मांगी और बारिश न होने की दशा में तीन दिनों तक पुरे गांव केमुसलमान अपने अपने घरो में इबादत करेंगे, रोजा रख्खेंगे व नमाज पढ़ कर बारिश के लिए दुआ माँगेंगे।नमाज में हाजी रियासत,मो0 इदरीश, मो0 शमीम,निजामुद्दीन,रजीम,मुख़्तार अहमद,सुलेमान, हाजी सरीकुन निशा, हाजी कुसमुन निशा सहित सैकड़ो मुस्लिम शामिल रहे। Prayer (namaz) for rain.

आखिर इंसानी जिंदगी का मकसद क्या है, यह बात सिर्फ इस्लाम ही सिखाता है सबको

प्रोफेसर बैनिल हैविट, अमेरिका के  एक मशहूर विचारक और लेखक रहे हैं। उनकी गिनती अमेरिका के इस्लाम कबूल करने वाले अहम लोगों में की जाती है। उनका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह हसन बैनिल है। इस लेख में उन्होंने इस्लाम की उन खूबियों का जिक्र  किया है जिनसे वे बेहद प्रभावित हुए।पेश है वह कैसे इस्लाम में दाखिल हुवे, उन्हीं की ज़ुबानी :मेरा इस्लाम कबूल करना कोई ताज्जुब की बात नहीं हैन ही इसमें किसी तरह के लालच का कोई दखल है। मेरे खयाल में यह जहन की फितरती तब्दीली और उन धर्मों का ज्यादा अध्ययन करने का नतीजा है जो इंसानी अक्लों  पर काबिज है। मगर यह बदलाव उसी शख्स में  पैदा हो सकता है जिसका दिल व दिमाग धार्मिक पक्षपात और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठा हुआ हो और साफदिल से अच्छे और बुरे में अंतर कर सकता हो।मैं मानता हूं कि ईसाइयत में भी कुछ सच्चे और मुफीद उसूल मौजूद हैं लेकिन इस धर्म में पादरियों ने कई गलत चीजों  को मिला दिया। उन्होंने इस तरह इसधर्म की सूरत को बिगाड़ कर रख दिया और इसे बिलकुल बेजान कर डाला। इसके विपरीत इस्लाम उसी मूल शक्ल में मौजूद है जिसमें वह प्रकट हुआ। चूंकि मैं एक ऐसे धर्म की तलाश में था जो मिलावट से पवित्र हो इसलिए मैंने इस्लाम कबूल कर लिया।आप किसी चर्च में चले जाइए वहां नक्श व निगार, तस्वीरों और मूर्तियों के सिवा आपको कुछ नहीं मिलेगा। इसके अलावा पादरियों के चमकते दमकते वस्त्रों पर नजर डालिए, फिर ननों की भीड़ को देखिए तो उनका रूहानियत से दूर का संबंध भी दिखाई नहीं देता। ऐसा मालूम होता है कि हम किसी इबादत खाने में नहीं बल्कि एक ऐसे बुतखाने में खड़े हैं जो सिर्फ  बुतों की पूजा के लिए बनाया गया है। उसके बाद मस्जिद पर नजर डालिए। वहां आपको न कोई मूरत दिखाई देगी और न तस्वीर। फिर नमाजियों की लाइनों पर नजर डालिए। हजारों छोटे बड़े इंसान कंधे से कंधा मिलाए खड़े नजर आएंगे। सच तो यह है किनमाज में रूकू और सजदों का मंजर इस कदर दिल और नजर को खींचने वाला होता है कि कोई इंसान इससे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता।मस्जिद का पूरा माहौल और उसकी तमाम चीजें रूहानियत (अध्यात्म) की तरफ इंसान की रहनुमाई करती है। न वहां बनावट है और न बुनियादी सजावट।। इसके विपरीत चर्च की तमाम चीजों में भौतिक चमक-दमकका दिखावा बहुत ज्यादा है। हो सकता है कि कुछ लोग ऐतराज करें कि प्रोटेसटेंट धर्म  तो इन बुराइयों से पवित्र है और उसने तो अपने गिरजों से बुत और तस्वीरें निकाल फैंकी है, तुमने इस्लाम के बजाय इसे कबूल क्यों नहीं किया। बेशक प्रोटेसटेंट धर्मसच्चे ईसाई मजहब के करीब जरूर है मगर मैं इस विश्वास के बावजूद कि की ईसा मसीह एक पैगम्बर थे हर्गिज उनकी उलूहियत का काइल नहीं। वे मेरी ही तरहएक इंसान थे और मेरी यह आस्था कोई नई नहीं है बल्किशुरू से ही मैं इसका इजहार करता रहा हूं। जो न सिर्फ हजरत मसीह अलैहिस्सलाम का ही आदर सिखाता है बल्कि दुनिया के तमाम धर्मों और धर्म के मानने वालों के आदर की दावत देता है।मेरा एक लंबे समय से इस्लाम की तरफ झुकाव था, लेकिन मेरा ईमान इतना मजबूत नहीं हुआ था कि बेधड़क अपने मुसलमान होने का ऐलान कर सकता। यह संकोच किसी   समाज या इंसान के डर के कारण नहीं था बल्कि उसकी वजह यह थी कि मैं पूरी तरह इस्लाम की खूबियों  से परिचित नहीं था। लेकिन इस्लाम के बारे में जैसे- जैसे इस्लामिक विद्वानों की किताबें पढ़ता गया, मेरी आंखें खुलती गईं। मुझे साफ तौर पर इस धर्म की खूबियां और  इसके आखरी पैगंबर मुहम्मद सल्ल. का इंसानों पर एहसान मालूम हो गया और आखिर में मैंने इस मजहब को अपना लिया।इस्लाम जैसी तौहीद परस्ती (ईश्वर को एक मानना, एकेश्वरवाद) मैंने देखी है, वह किसी दूसरे धर्म में नहीं पाई जाती। इस्लाम के इसी एकेश्वरवाद ने सबसे पहले मुझे इस धर्म की तरफ खींचा। इस्लाम में जो सबसे बड़ी खूबी मैंने पाई वह यह है कि वह सिर्फ रूहानी तरक्की (आध्यात्मिक विकास) की ही बात नहीं करता बल्कि वह दुनियावी तरक्की में भी बहुत बड़ा मददगार है। इस्लाम इंसान को दुनिया छोडऩे और संन्यासी की जिंदगी गुजारने की तालीम नहीं देता बल्कि वह इंसान को दुनियावी जिंदगी को बेहतर बनाने और इसमें कामयाबी हासिल करने  की प्रेरणा देता है।इस्लाम धार्मिक मामलों में ही इंसान का मार्गदर्शन नहीं करता बल्कि दुनिया के हर मामले में इंसान को बेहतर रास्ता दिखाता है और उसके हर कदम पर रहनुमाई करता है। इस्लाम ने दुनिया को आखिरत (परलोक) की खेती करार दिया है और इंसान को हुक्म दिया है कि वह धार्मिक कर्तव्यों को निभाने के साथ-साथ दुनिया से जुड़े अपने कर्तव्यों को निभाने में भी कोताही न बरते। सच तो यह है कि मौजूदा वैज्ञानिक दौर में इस्लाम ही अकेला ऐसा  धर्म है जो तरक्की पसंद इस दुनिया की सही तौर पर रहनुमाई कर सकता है, इसे सही राह दिखा सकता है।इस्लाम की बड़ी खूबियों में से एक खूबी यह है कि यहसंकुचित सोच और पक्षपात का सख्त विरोधी है। इस्लाम सिर्फ अपने धर्म के मानने वालों के साथ ही मोहब्बत और अच्छे बर्ताव की हिदायत नहीं देता बल्कि वह सब इंसानों के साथ चाहे वह किसी भी धर्म के साथ ताल्लुक रखते हों, हमदर्दी, बराबरी और अच्छेबर्ताव का हुक्म देता है। वह इंसानों को बांटने नहीं बल्कि जोडऩे का पक्षधर है। सच तो यह है कि इस्लाम ने ही इंसानों को पहली बार इंसानियत का सबकसिखाया है।मैं पिछले पांच सालों से इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल कर रहा हूं, इस धर्म से जुड़ी उपासना कर रहा हूं। जिस बात ने मेरे ईमान और यकीन को मजबूती दी हैवह इस्लाम के पवित्र और बुलंद उसूल हैं। इसकी विश्वव्यापी भाईचारगी है। उसकी बेमिसाल बराबरी है और उसका इल्म और सादगी है जिसने मेरे दिल व दिमाग में एक नई रोशनी पैदा कर दी है।इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो सिर से पांव तक इल्म व अमल है बल्कि मैं तो कहूंगा कि इस्लाम कबूल किए जाने वाला धर्म है। दूसरी तरफ ईसाइयत ऐसा धर्म है जो न सिर्फ ईश्वर के एक होने यानी एकेश्वरवार का इनकार करने वाला है बल्कि इंसान को दुनिया और उसकीनेमतों से फायदा उठाने से मना करता है। कोई शख्स अगर सही मायने में ईसाई बनना चाहे तो उसे दुनिया से किनारा करके एकांत को अपनाना पड़ेगा। मगर इस्लाम में रहकर हम दुनिया की तमाम राहतों और खुशियों से फायदा उठा सकते हैं। ना हमें मस्जिद केकिसी कोने में हरदम बैठे रहने की जरूरत है और न वीरानों में जिंदगी बसर करने की मजबूरी होगी।अगर इंसान को दुनिया में इसिलिए भेजा गया है कि दुनिया को छोड़कर संन्यासी जिंदगी अपनाए तो उसकी पैदाइश का मकसद समझ में नहीं आता। इंसानी जिंदगी का मकसद क्या है, यह सिर्फ इस्लाम ने समझाया है कि इंसान दुनिया में रहकर कुदरत की हर चीज से फायदा उठाए मगर साथ ही अपने पालनहार और उसकी सृष्टि का भी खयाल रखें।मैंने जबसे इस्लाम कबूल किया है, दिली सुकून महसूस कर रहा हूं। मेरी दुनिया भी दुरुस्त हो गई है और आखिरत (परलोक) भी।इंशाअल्लाह……# तक़वा इस्लामिक स्कूल


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मुस्लिम छात्रा को बनाया गया शिकार,इस्लाम फोबिया पर दिया था इन्होंने इंटरव्यू

एक 23 वर्षीय ब्रिटिश मुस्लिम छात्रा रुकैया हैरिस को ‘इस्लामोफोबिया’ (इस्लाम के प्रति नफरत) पर चर्चा के दौरान ही इस्लामोफोबिया का शिकार होने पड़ा। हैरिस ब्रिटिश रेडियो सेवा बीबीसी के एक कार्यक्रम के लिए इंटरव्यू दे रही थीं। रुकैया बीबीसी से सोशल मीडिया पर हुए अपने बुरे अनुभवों को साझा कर रही थीं। रुकैया एक स्थानीय पार्क में पत्रकार को बता रही थीं कि ट्विटर पर उन्हें किस तरह के कमेंट का सामना करना पड़ता है, तभी पीछे बैठे एक ब्रिटिश आदमी ने कहा, “यहां शरिया कानून नहीं चलता है।”डेली मेल यूके के अनुसार इस व्यक्ति का नाम पॉल था। व्यक्ति के कमेंट के बाद रुकैया ने कार्यक्रम के बीच में उससे कमेंट करने का कारण पूछा। रुकैया ने पॉल से कहा, “अगर आप कुछ कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं। क्या आप शरिया कानून के बारे में बात करना चाहते हैं?” रुकैया ने कहा, “आप मुझसे शरिया कानून के बारे में बात करना चाहते हैं? हम शरिया कानून पर बात कर सकते हैं। आपने किसी कारण से ही ऐसा कमेंट किया होगा।” हालांकि पॉल ने इससे इनकार कर दिया कि उसने रुकैया पर कमेंट किया था। पॉल पूरे इंटरव्यू के दौरान वहीं पास बैठा रहा था। रुकैया के जवाब में पॉल ने कहा, “हम बोलने की आजादी खो रहे हैं। हमें राजनीतिक रूप से सही रहने के लिए कहा जाता है, तब भी जब हम ऐसा नहीं करना चाहते।”बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई में हर रोज इस्लामोफोबिया से जुड़े करीब सात हजार ट्वीट किए गए थे। फ्रांस के नीस में हुए आतंकी हमले के दौरान ऐसे ट्वीट में काफी बढ़ोतरी हो गई थी। रुकैया ने अपने इंटरव्यू के दौरान इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उनके द्वारा ऐसे हमले की निंदा करने से लोगों की राय पर कोई फर्क पड़ेगा। उन्होंने कहा, “मैं क्या कहती हूं, मैं क्या लिखती हूं या मैं क्या पोस्ट करती हूं इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। किसी भी तरह के आतंकी हमले के बाद लोग इस्लाम पर किसी न किसी तरह हमला करते हैं, इस्लाम का या मेरा या मेरे हिजाब का अपमान करते हैं। चाहे मैं किसी बिल्कुल ही जुदा चीज के बारे में बात करूं, चाहे मैं मरने वालों को श्रद्धांजलि ही दूं…।”बीबीसी की पत्रकार ने एक ब्रिटिश अखबार से बातचीत में बताया कि पॉल के कमेंट से उनकी रिकॉर्डिंग की गुणवत्ता प्रभावित हो रही थी। आपत्ति जताने पर पॉल ने कहा कि उसके पास ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।’ पत्रकार ने बताया कि पॉल ने वीडियो में अपना चेहरा दिखाए जाने की अनुमति दी थी।

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