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Thursday, 1 September 2016

मुसलमान है सबसे बेवकूफ कौम,आज के हालात इसी पागलपन का नतीजा है।

इस पोस्ट को करने का लेखक का साफ़ नाज़िरिया है,के वो मुस्लिम धर्म से फिरकापरस्तों को जड़ से मिटाने की इक कोशिश कर रहा है अगर आपको इस लेखक की बात समझ आती है तो कृपया करके इसपर अमल करे और अमन शांति को बढ़ावा दे।
हिंदुओं में सिर्फ़ 73 नहीं बल्कि हज़ारों फ़िरके मौजूद हैं मगर धर्म के आधार पर वो कभी नहीं लड़ते । सिखों में अकाली व निरंकारी कभीएक दूसरे के मतभेद के बावजूद नहीं लड़ते । दिगम्बर जैन और श्वेतामबर जैन दोनों समुदायों में बहुत ज़बरदस्त मतभेद है कि दिगम्बर मुनि नंगे रहते हैं और श्वेताम्बर सिर से पैर तक श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, मगर क्या मजाल है कि अपने प्रवचनों के दौरानएक दूसरे की आलोचना करें या गालियों से नवाज़ें ।ईसाइयों में रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट फ़िरकों के बीच प्रारम्भ में कड़वाहट रही मगर जल्द ही दोनों को अक्ल आ गयी और उन्होंने लड़ना बंद कर दिया ।पूरी दुनियाँ  में सिर्फ़ मुसलमान ही ऐसी बेवकूफ कौम है जिसने अपने दीन की छोटी छोटी बातों पर बड़े बड़े विवाद खड़े किये और बेशुमारफ़िरके बना डाले। हर फ़िरका अपने आप में एक दीन बन गया और उसने सिर्फ़ खुद को मुसलमान और दूसरे फ़िरकों को काफ़िर समझना शुरू कर दिया।फेसबुक पर हमारा पेज लाइक करने की लिये, यहाँ क्लिक करे…जिस कौम का दीन एक रब  एक रसूल एक कुरआन एक  किबला एक हो फिर  भी हज़ारों तरह के मज़हबी झगड़े ? आखिर अल्लाह इन पागलों पर अपनी रहमतें क्यों नाज़िल फ़रमाये और क्यों न मुसीबत में डाले आज जो हालात पूरी दुनियाँ में मुसलमानों के हैं वो इसी पागलपन का नतीजा है ।अभी भी वक्त है कि मुसलमान सुधर जायें इस्लाम को मज़बूती से थाम लें और एक ठोस उम्मत बन जायें एंव पिछली बेवकूफ़ियाँ न दोहरायें।फेसबुक पर हमारा पेज लाइक करने की लिये, यहाँ क्लिक करे…


(ये लेखक के निजी विचार हैं ) DELHI UP LIVE की सहमति इसमें कोई मायने नहीं रखती।
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क्या 4 शादियां कर 40 बच्चे पैदा कर रहे हैं मुसलमान: मिथ और सच्चाई!

मुसलमानों की आबादी बाक़ी देश के मुक़ाबले तेज़ी से क्यों बढ़ रही है? क्या मुसलमान जानबूझ कर तेज़ी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं? क्या मुसलमान चार-चार शादियाँ कर अनगिनत बच्चे पैदा कर रहे हैं? क्या मुसलमान परिवार नियोजन को इसलाम-विरोधी मानते हैं? क्या हैं मिथ और क्या है सच्चाई? एक विश्लेषण.तो साल भर से रुकी हुई वह रिपोर्ट अब जारी होनेवाली है! हालाँकि रिपोर्ट 'लीक' हो कर तब ही कई जगह छप-छपा चुकी थी. अब एक साल बाद फिर 'लीक' हो कर छपी है. ख़बर है कि यह सरकारी तौर पर जल्दी ही जारी होनेवाली है! रिपोर्ट 2011 की जनगणना की है. देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ गया है. 2001 में कुल आबादी में मुसलमान 13.4 प्रतिशत थे,जो 2011 में बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये! असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, केरल, उत्तराखंड, हरियाणा और यहाँ तक कि दिल्ली की आबादी में भी मुसलमानों का हिस्सा पिछले दस सालों में काफ़ी बढ़ा है! असम में 2001 में क़रीब 31 प्रतिशत मुसलमान थे, जो 2011 में बढ़ कर 34 प्रतिशत के पारहो गये. पश्चिम बंगाल में 25.2 प्रतिशत से बढ़ कर 27, केरल में 24.7 प्रतिशत से बढ़ कर 26.6, उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9, जम्मू-कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़ कर 68.3, हरियाणा में 5.8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 11.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.9 प्रतिशत हो गया. क्या हुआ बांग्लादेशियों का?वैसे बाक़ी देश के मुक़ाबले असम और पश्चिम बंगाल में मुसलिम आबादी में हुई भारी वृद्धि के पीछे बांग्लादेश से होनेवाली घुसपैठ भी एक बड़ा कारण है. दिलचस्प बात यह है कि नौ महीने पहले अपने चुनावप्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में एक सभा में दहाड़ कर कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठिये 16 मई के बाद अपना बोरिया-बिस्तर बाँध कर तैयार रहें, वह यहाँ रहने नहीं पायेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद से अभी तक सरकार ने इस पर चूँ भी नहीं की है! तब हिन्दू वोट बटोरने थे, अब सरकार चलानी है. दोनों में बड़ा फ़र्क़ है! ज़ाहिर है कि अब भी ये आँकड़े साक्षी महाराज जैसों को नया बारूदभी देंगे. वैसे हर जनगणना के बाद यह सवाल उठता रहा है कि मुसलमानों की आबादी बाक़ी देश के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ क्यों बढ़ रही है? और क्या एक दिन मुसलमानों की आबादी इतनी बढ़ जायेगी कि वह हिन्दुओं से संख्या में आगे निकल जायेंगे? ये सवाल आज से नहीं उठ रहे हैं. आज से सौ साल से भी ज़्यादा पहले 1901 में जब अविभाजित भारत में आबादी के आँकड़े आये और पता चला कि 1881 में 75.1 प्रतिशत हिन्दुओं के मुक़ाबले 1901 में उनका हिस्सा घट कर 72.9 प्रतिशत रह गया है, तब बड़ा बखेड़ा खड़ा हुआ. उसके बाद से लगातार यह बात उठती रही है कि मुसलमान तेज़ी से अपनी आबादी बढ़ाने मेंजुटे हैं, वह चार शादियाँ करते हैं, अनगिनत बच्चे पैदा करते हैं, परिवार नियोजन को ग़ैर-इसलामी मानते हैं और अगर उन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो एकदिन भारत मुसलिम राष्ट्र हो जायेगा!क्या अल्पसंख्यक हो जायेंगे हिन्दू?अभी पिछले दिनों उज्जैन जाना हुआ. दिल्ली के अपने एक पत्रकार मित्र के साथ था. वहाँ सड़क पर पुलिस केएक थानेदार महोदय मिले. उन्हें बताया गया कि दिल्ली के बड़े पत्रकार आये हैं. तो कहने लगे, साहबबुरा हाल है. यहाँ एक-एक मुसलमान चालीस-चालीस बच्चे पैदा कर रहा है. आप मीडियावाले कुछ लिखते नहीं है! सवाल यह है कि एक थानेदार को अपने इलाक़े की आबादी के बारे में अच्छी तरह पता होता है. कैसे लोग हैं, कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, कितने अपराधी हैं, इलाक़े की आर्थिक हालत कैसी है, वग़ैरह-वग़ैरह. फिर भी पुलिस का वह अफ़सर पूरी ईमानदारी से यह धारणा क्यों पाले बैठा था कि एक-एक मुसलमान चार-चार शादियाँ और चालीस-चालीस बच्चे पैदा कर रहा है! यह अकेले उस पुलिस अफ़सर की बात नहीं. बहुत-से लोग ऐसा ही मानते हैं. पढ़े-लिखे हों या अनपढ़. साक्षी महाराज हों या बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य, जो हिन्दू महिलाओं को चार से लेकर दस बच्चे पैदा करने की सलाह दे रहे हैं! क्यों? तर्क यही है न कि अगर हिन्दुओं ने अपनी आबादी तेज़ी से नबढ़ायी तो एक दिन वह 'अपने ही देश में अल्पसंख्यक' हो जायेंगे!मुसलमान: मिथ और सच्चाई!यह सही है कि मुसलमानों की आबादी हिन्दुओं या और दूसरे धर्मावलम्बियों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ीसे बढ़ी है. 1961 में देश में केवल 10.7 प्रतिशत मुसलमान और 83.4 प्रतिशत हिन्दू थे, जबकि 2011 में मुसलमान बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये और हिन्दुओं के घट कर 80 प्रतिशत से कम रह जाने का अनुमान है. लेकिन फिर भी न हालत उतनी 'विस्फोटक' है, जैसी उसे बनाने की कोशिश की जा रही और न ही उन तमाम 'मिथों' में कोई सार है, जिन्हें मुसलमानों के बारे में फैलाया जाता है. सच यह है कि पिछले दस-पन्द्रह सालों में मुसलमानों की आबादी की बढ़ोत्तरी दर लगातार गिरी है. 1991 से 2001 के दस सालों के बीचमुसलमानों की आबादी 29 प्रतिशत बढ़ी थी, लेकिन 2001 से 2011 के दस सालों में यह बढ़त सिर्फ़ 24प्रतिशत ही रही. हालाँकि कुल आबादी की औसत बढ़ोत्तरी इन दस सालों में 18 प्रतिशत ही रही. उसके मुक़ाबले मुसलमानों की बढ़ोत्तरी दर 6 प्रतिशत अंक ज़्यादा है, लेकिन फिर भी उसके पहले केदस सालों के मुक़ाबले यह काफ़ी कम है. एक रिसर्च रिपोर्ट (हिन्दू-मुसलिम फ़र्टिलिटी डिफ़्रेन्शियल्स: आर. बी. भगत और पुरुजित प्रहराज) के मुताबिक़ 1998-99 में दूसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के समय जनन दर (एक महिला अपने जीवनकाल में जितने बच्चे पैदा करती है)हिन्दुओं में 2.8 और मुसलमानों में 3.6 बच्चा प्रति महिला थी. 2005-06 में हुए तीसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Vol 1, Page 80, Table 4.2) के अनुसार यह घट कर हिन्दुओंमें 2.59 और मुसलमानों में 3.4 रह गयी थी. यानी औसतन एक मुसलिम महिला एक हिन्दू महिला के मुक़ाबले अधिक से अधिक एक बच्चे को और जन्म देती है. तो ज़ाहिर-सी बात है कि यह मिथ पूरी तरह निराधार है कि मुसलिम परिवारों में दस-दस बच्चे पैदा होते हैं. इसी तरह, लिंग अनुपात को देखिए. 1000 मुसलमान पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या 936 है. यानी हज़ार में कम से कम 64 मुसलमान पुरुषों को अविवाहित ही रह जाना पड़ता है.ऐसे में मुसलमान चार-चार शादियाँ कैसे कर सकते हैं?मुसलमान और परिवार नियोजनएक मिथ यह है कि मुसलमान परिवार नियोजन को नहीं अपनाते. यह मिथ भी पूरी तरह ग़लत है. केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मुसलिम आबादी बड़ी संख्या में परिवार नियोजन को अपना रही है. ईरान और बांग्लादेश ने तो इस मामले में कमाल ही कर दिया है.1979 की धार्मिक क्रान्ति के बाद ईरान ने परिवार नियोजन को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया था, लेकिन दस साल में ही जब जनन दर आठ बच्चों तक पहुँच गयी, तो ईरान के इसलामिक शासकों को परिवार नियोजन की ओर लौटना पड़ा और आज वहाँ जनन दर घट कर सिर्फ़ दो बच्चा प्रति महिला रह गयी है यानी भारत की हिन्दू महिला की जनन दर से भी कम! इसी प्रकार बांग्लादेश में भी जनन दर घट कर अब तीन बच्चों पर आ गयी है. प्रसिद्ध जनसांख्यिकी विद् निकोलस एबरस्टाट और अपूर्वा शाह के एक अध्य्यन (फ़र्टिलिटी डिक्लाइन इन मुसलिम वर्ल्ड) के मुताबिक़ 49 मुसलिम बहुल देशों में जनन दर 41 प्रतिशत कम हुई है, जबकि पूरी दुनिया में यह 33 प्रतिशत ही घटी है. इनमें ईरान, बांग्लादेश के अलावा ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया, अल्बानिया, क़तर और क़ुवैत में पिछले तीन दशकों में जनन दर 60 प्रतिशत से ज़्यादा गिरी है और वहाँ परिवार नियोजन को अपनाने से किसी को इनकार नहीं है. भारत में मुसलमान क्यों ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं? ग़रीबी और अशिक्षा इसका सबसे बड़ा कारण है.भगत और प्रहराज के अध्य्यन के मुताबिक़ 1992-93 के एक अध्य्यन के अनुसार तब हाईस्कूल या उससे ऊपर शिक्षित मुसलिम परिवारों में जनन दर सिर्फ़ तीन बच्चा प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ परिवारों में यह पाँच बच्चा प्रति महिला रही. यही बात हिन्दू परिवारों पर भी लागू रही. हाईस्कूल व उससे ऊपर शिक्षित हिन्दू परिवार में जनन दर दो बच्चा प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ हिन्दू परिवार में यह चार बच्चा प्रति महिला रही [स्रोत IIPS (1995): 99]. ठीक यही बात आर्थिक पिछड़ेपन के मामले में भी देखने में आयी और अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों में जनन दर औसत से कहीं ज़्यादा पायी गयी. 2005-06 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (Vol 1, Page 80, Table 4.2) में भी यही सामने आया कि समाज के बिलकुल अशिक्षित वर्ग में राष्ट्रीय जनन दर 3.55 और सबसे ग़रीब वर्ग में3.89 रही, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है. औरइसके उलट सबसे अधिक पढ़े-लिखे वर्ग में राष्ट्रीय जनन दर केवल 1.8 और सबसे धनी वर्ग में केवल 1.78 रही. यानी स्पष्ट है कि समाज के जिस वर्ग में जितनीज़्यादा ग़रीबी और अशिक्षा है, उनमें परिवार नियोजन के बारे में चेतना का उतना ही अभाव भी है. इसलिए जनन दर को नियंत्रण में लाने के लिए शिक्षा और आर्थिक विकास पर सबसे पहले ध्यान देना होगा.गर्भ निरोध से परहेज़ नहींपरिवार नियोजन की बात करें तो देश में 50.2 प्रतिशत हिन्दू महिलाएँ गर्भ निरोध का कोई आधुनिकतरीक़ा अपनाती हैं, जबकि उनके मुक़ाबले 36.4 प्रतिशत मुसलिम महिलाएँ ऐसे तरीक़े अपनाती हैं (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3, 2005-06, Vol 1, Page 122, Table 5.6.1). इससे दो बातें साफ़ होती हैं. एक यह कि मुसलिम महिलाएँ गर्भ निरोध के तरीक़े अपना रही हैं, हालाँकि हिन्दू महिलाओं के मुक़ाबले उनकी संख्या कम है और दूसरी यह कि ग़रीब और अशिक्षित मुसलिम महिलाओं में यह आँकड़ा और भी घट जाता है. ऐसे में साफ़ है किमुसलिम महिलाओं को गर्भ निरोध और परिवार नियोजन से कोई परहेज़ नहीं. ज़रूरत यह है कि उन्हें इस बारे में सचेत, शिक्षित और प्रोत्साहित किया जाये.दूसरी एक और बात, जिसकी ओर कम ही ध्यान जाता है. हिन्दुओं के मुक़ाबले मुसलमान की जीवन प्रत्याशा (Life expectancy at birth) लगभग तीन साल अधिक है. यानी हिन्दुओं के लिए जीने की उम्मीद 2005-06 में 65 साल थी, जबकि मुसलमानों के लिए 68 साल. सामान्य भाषा में समझें तो एक मुसलमान एक हिन्दू के मुक़ाबले कुछ अधिक समय तक जीवित रहता है ( Inequality in Human Development by Social and Economic Groups in India). इसके अलावा हिन्दुओं में बाल मृत्यु दर 76 है, जबकि मुसलमानोंमें यह केवल 70 है (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3, 2005-06, Vol 1, Page 182, Table 7.2). यह दोनों बातें भी मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक कारण है. आबादी का बढ़ना चिन्ता की बात है. इसपर लगाम लगनी चाहिए. लेकिन इसका हल वह नहीं, जो साक्षी महाराज जैसे लोग सुझाते हैं. हल यह है कि सरकार विकास की रोशनी को पिछड़े गलियारों तक जल्दी से जल्दी ले जाये, शिक्षा की सुविधा को बढ़ाये, परिवार नियोजन कार्यक्रमों के लिए ज़ोरदार मुहिम छेड़े, घर-घर पहुँचे, लोगों को समझे और समझाये तो तसवीर क्यों नहीं बदलेगी? आख़िर पोलियो के ख़िलाफ़ अभियान सफल हुआ या नहीं!(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेखक वरिष्ठ पत्रकार व लेखक हैं। यह लेख उनके ब्लॉग "राग देश" से साभार लिया गया है।)

43% मुस्लिम निरक्षर , मुस्लिम सबसे अशिक्षित समुदाय,आज के हालात इसी का नतीजा।

नई दिल्ली -भारत में तालीम में मुस्लिम कितने पीछे है इसको 2011 सेन्सस के आकड़ो से जाना जा सकता है मुस्लिम समुदाय के 43 परसेंट हिस्सा निरक्षर हैजोकि धार्मिक आधार पे संकेत दे रहा है कि मुस्लिम शिक्षा में सबसे पिछड़ा है वही जैन समुदाय में सिर्फ 13 फीसद निरक्षर है इस तरहजैन समुदाय भारत का सबसे शिक्षित समुदाय हैवही हिन्दू में 36 परसेंट निरक्षर है और सिखमें 32 फीसद निरक्षर है बौध मे ये दर 28 फ़साद और ईसाईयों में 25 फीसद हैमुसलमानों में स्नातक सिर्फ 2.7 फीसद है वहीसिर्फ .44 टेकनिकल डिग्री या डिप्लोमा होल्डर ह

AIMIM को रैली की इजाजत न देने वालेअधिकारियों की शिकायत चुनाव आयोग मेंकरेंगे ओवैसी

लखनऊ:आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के चीफ असदुद्दीन ओवैसी को कानपुर में दूसरी बार जनसभा करने की इजाज़त नहीं देने से बखेड़ा खड़ा हो गया है। इस मामले में एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट अविनाश सिंह की संदिग्ध भूमिका से ओवैसी इस कदर खफा हैं कि उनकी चुनावी जनसभा में रोड़ा अटकाने वाले अधिकारियों के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत करने की मंशा ज़ाहिर की है। उनका कहना है कि ऐसे अधिकारियों को अभी उनकी जगह से नहीं हटाया गया तो वे चुनाव को भी प्रभावित कर सकते हैं।बता दें कि 28 अगस्त को ओवैसी की कानपुर के हलीम मुस्लिम कॉलेज ग्राउंड में जनसभा होनी थी। मगर प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी। बताते हैं , एडीएम ने इस बारे में रिपोर्ट दी थी कि यदि ओवैसी की जनसभा हुई तो क्षेत्र मेंसपा का मुस्लिम जनाधार खिसक सकता है। इस समय क्षेत्र के सीसमन विधानसभा हलके की रहनुमाई सपा विधायक इरफ़ान सोलंकी करते हैं।इससे पहले 14 अगस्त को कानपुर में ओवैसी की जनसभा होनी थी। तब स्वतंत्रता दिवस का हवालादेकर प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। कानपुर के डीएम कौशल राज शर्मा ने एडीएम की रिपोर्ट पर आश्चर्य व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि कोई अधिकारी ऐसी रिपोर्ट कौसे दे सकता है। वह उसकी जांच खुद करेंगे। उन्होंने कहा कि जनसभा करन देने और नहीं करने देने की इजाज़त प्रशासन पुलिस रिपोर्ट के आधार पर देता है। एडीएम की रिपोर्ट को लेकर ज़रूर कोई ग़लत फहमी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि हलीम कॉलेज की ज़मीन को लेकर विवाद है। शायद इस लिए जनसभा की इजाज़त नहीं दी गई होगी। मगर ओवैसी प्रशासन के इस तर्क सेकतई सहमत नहीं। एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कहा कि वे इस बारे में चुनाव आयोग से शिकायत करेंगे।https://m.facebook.com/Raziyaparveen7290/

दूसरे धर्म के आतंकी भी होते है बरी,और मुस्लिमो को शक के बिना पर आतंकी दिया जाता है करार:शरद पवार

मुंबई 31 अगस्त: एनसीपी सरबराह शरद पवार ने महाराष्ट्रा एटीएस पर मुस्लिम नौजवानों को महिज़ शुबा की बुनियाद पर दहशत-ज़दा करने और उन्हें गै़रक़ानूनी तौर पर महरूस रखने का इल्ज़ाम आइद किया।उनके बयान पर बीजेपी और मजलिस इत्तेहाद उलमुस्लिमीन ने नुक्ता-चीनी करते हुए कहा किवो सियासी फ़ायदे के लिए मौक़ा परसताना मौकुफ़इख़तियार कर रहे हैं। शरद पवार ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मुख़्तलिफ़ मुस्लिम तन्ज़ीमों के एक वफ़द ने उनसे हाल ही में मुलाक़ात की और मुस्लिम नौजवानों को आई एस या दुसरे ममनूआ तन्ज़ीमों से रवाबित के महिज़ शुबा की बिना दहशत-ज़दा करने पर तशवीश का इज़हार किया।शरद पवार ने बताया कि मुख़्तलिफ़ मुस्लिम तन्ज़ीमों की नुमाइंदगी कर रहे इस 28 रुकनी वफ़द ने ये शिकायत भी की कि एटीएस , मुस्लिम नौजवानों को दहशत-ज़दा कर रही है। इस वफ़द ने आईएस की सख़्ती से मुज़म्मत की और कहा कि मुस्लिम तबक़ा से ताल्लुक़ रखने वाले नौजवान कभी उस की सरगर्मीयों की ताईद नहीं करते।शरद पवार ने दावा किया कि एसी कई मिसालें खास्कर मरहटवाड़ा इलाके में सामने आएं जहां मुस्लिम नौजवानों को इन्सिदाद-ए-दहशत गर्दीस्क्वाड (एटीएस) ने शुबा की बुनियाद पर पकड़ा और उन्हें गै़रक़ानूनी हिरासत में रखा। क़ानून के मुताबिक़ किसी शख़्स को गिरफ़्तार करने के अंदरून 24 घंटे मजिस्ट्रेट के रूबरू पेश करना ज़रूरी है, लेकिन ऐसे कई वाक़ियात सामने आए कि 120 घंटे गुज़रने के बावजूद भी महरूस लोगों को यक्का-ओ-तन्हा और नामालूम मुक़ाम पर रखा गया।उन्होंने कहा कि हुकूमत को इस मुआमले का संजीदगी से जायज़ा लेना चाहीए। शरद पवार के बयान पर रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करते हुए बीजेपी तर्जुमान माधव भंडारी ने कहा कि एनसीपी लीडरने अक्सर फ़िर्क़ापरसताना और ज़ात पात पर मबनीसियासत की है लिहाज़ा उन्हें दूसरों को सबक़ देने का कोई अख़लाक़ी हक़ नहीं है।मजलिस इत्तेहाद उलमुस्लिमीन के रुकने असेंबली वारिस पठान ने कहा कि शरद पवार को एककिस्म का ख़बत है और उन्होंने ये जानना चाहा कि जिस वक़्त वो (शरद पवार) रियासत में इक़तिदार पर थे , उन्होंने बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को झूटे मुक़द्दमात में फांसने से रोकने के लिए क्या-किया? मालेगांव मुक़द्दमा का हवाला देते हुए पवार ने कहा कि मुस्लिम नौजवानों को 8 साल जेल में गुज़ारने के बाद अदालत ने बरी कर दिया।उन्होंने कहा कि ऐसा दूसरों के साथ नहीं होना चाहीए। बीजेपी तर्जुमान ने कहा कि एनसीपी लीडर चंद दिन से दो फ़िर्कावाराना कार्ड्स खेल रहे हैं। मजलिस के वारिस पठान ने कहा कि शरद पवार ये भूल गए उनकी हुकूमत में ही औरंगाबाद और मालेगांव मुक़द्दमात दर्ज किए गए थे। इन मुक़द्दमात में पाँच ता छःसाल चार्ज शीट क्युं दाख़िल नहीं की गई। इस वक़्त पवार हुकूमत ने कोई कार्रवाई क्युं नहीं की जबकि बेशुमार बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों की ज़िंदगी अजीरन बन रही थी।

बलूचिस्तान से सेना हटाये पाकिस्तान,वरना 1971 जैसे बटवारे को रहे तैयार।

बलूच रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष ब्रह्मदाग खान बुगती ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है। उन्होंने पाकिस्तान से किसी भी बातचीत से पहले कहा कि सेना को पहले बलूच छोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उन्हें 1971 जैसे परिणाम भुगतने पड़ेंगे।बलूच नेता ने कहा कि मैंने पाकिस्तानी अधिकारियों की तरफ से ऐसा बयान देते देखा है जिसमें कहा गया है कि वे बातचीत करना चाहते हैं। बुगती ने कहा कि हमने कभी नहीं कहा कि हम बात नहीं करना चाहते। ये पाकिस्तानी सेनाहै जो किसी भी मु्द्दे को ताकत के जरिए दबानाचाहती है। पाकिस्तानी सेना लोगों को बंधक बना कर रखना चाहती है। हम बातचीत के लिए तैयार हैं। लेकिन इसके लिए पाकिस्तानी सेना को पहले बलूचिस्तान से वैसे ही हटना होगा जैसे कि उसने 1971 में बांग्लादेश से किया था।इससे पहले बलूच नेता बुगती ने एक वीडियो संदेश भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का मुद्दा उठाने के लिए दिल से धन्यवाद दिया था। बुगती ने अपने संदेश में स्पष्ट कहा था कि ‘हम न पाकिस्तान का हिस्सा थे, न हैं और न ही रहेंगे।’बुगती ने पाकिस्तान मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि वो बहुत मुश्किल से ही बलूचिस्तान की कोई खबर दिखाते हैं। जबकि पाकिस्तान की छोटी से छोटी खबर को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक किसी भी मीडिया हाउस ने बलूचिस्तान के बारे में कुछ भी नहीं दिखाया। जबकि वहां हर दिन महिला-पुरुष की हत्या हो रही है। महिलाओं को घर से निकाला जाता है लेकिन पाकिस्तानी मीडिया की ओर से ये खबर नहीं दिखाई जाती है।

अयोध्या में मस्जिद बनवाने में हम करेंगे मुस्लिमो की मदद: महंत ज्ञानदास

अयोध्यामें दशकों से चले आ रहे विवाद के अब लगता है कि शान्ति से सुलझने के आसार लग रहे है। अयोध्या के हनुमानगढ़ी ट्रस्ट ने जर्जर मस्जिद की जमीन पर नई मस्जिद बनाने और वहां नमाज अदा करने की इजाजत दे दी है और बल्कि उसका खर्च भी ट्रस्ट ही करेगा भले ही मस्जिद वाले हिस्से पर अभी भी हनुमानगढ़ी का अधिकारहै।गौरतलब है कि बीते दिनों अयोध्या नगर पालिकाने आलमगिरी मस्जिद को जर्जर बताते हुए नोटिसलगा दिया था कि वहां जाना खतरे से खाली नहीं है। जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि हनुमानगढ़ी मंदिर ट्रस्ट से मिले और महंत ज्ञान दास से मस्जिद की मरम्मत की गुजारिश की तो उन्होंने मस्जिद की मरम्मत और इसका पूरा खर्चा उठाने की बात कही और  प्रशासन को भी अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिया है। महंत ज्ञान दास ने कहा है कि यह भी खुदा का घर है और यहां मुस्लिम भाइयों को नमाज अदा करने की सुविधा मिलनी ही चाहिए।

मध्यप्रदेश में बारिश से बेहाल लोग, कहीं पानी में जनाजा तो कहीं साइकिल पर जननी

मध्यप्रदेश में हो रही भारी बारिश से जनजीवनकुछ यूं अस्त-व्यस्त हुआ है कि कहीं जन्म तो कहीं मौत के चलते लोगों को बढ़ रहे पानी से आई मुसीबतों से दो-चार होना पड़ रहा है जिसके चलते कहीं पानी में तैरकर जनाजा ले जाया जाता है तो कहीं प्रसव के लिए जननी को साइकिलपर। कर्रापुर गांव के ईशाक अली की बेटी का बीमारी के चलते मौत होना और उसपर भारी बारिश के चलते सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि बांकरई नदी के पर बने कब्रिस्तान तक बेटी का जनाजा कैसे ले जाया जाए। इस गांव नदी पर करने के लिए पुल के न होने से कब्रिस्तान का रास्ता जोखिम भरा रहता है। जिस कारण जनाजे को नदी में तैरकर उस पार बने कब्रिस्तान में ले जाया जाता है। इस बार भी ईशाक अली की बेटी को लोग तैरकर कब्रिस्तान तक ले गए। बावजूद इसकेवहां के विधायक लारिया का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है, जबकि वे 8 साल से विधायक हैं। नाराजगांववालों ने जब लारिया से मुलाकात की तो विधायक ने गांव और मुस्लिम समाज के लोगों को आश्वासन दिया कि इस परेशानी का हल जल्दी ही किया जाएगा।दूसरा मामला है छतरपुर के बक्सवाहा का। जहांएक नई जान को दुनिया में लाने के लिए जननी को अपनी जान को दांव पर लगाने की नौबत आई। दरअसल, यहां जननी वाहन को ठेकेदार ने बंद कर दिया है। जिससे पिछले महीने से ही यह हालात बने हुए है। पार्वती जो अपने मायके शहपुरा आई थी। अचानक प्रसव पीड़ा बढ़ने पर उसके पिता नन्हेभाई आदिवासी ने जब जननी एक्सप्रेस पर फोन लगाया तो पाया कि पिछले एक महीने से जननीठेकेदार द्वारा बंद करने के कारण सेवा में नहीं है और 108 पर फोन लगाने पर पता चला कि वो कहीं कॉल पर गई है। बेटी को तड़पता देख नन्हेभाई उसे साइकिल पर पीछे बैठाकर पैदल हीचल पड़े। साइकिल के सहारे पिता 6 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले आया, जहां पार्वती ने एक बेटे को जन्म दिया और पिता की सूझबूझ से जच्चा और बच्चा दोनों की जान बच गई।

हिन्दू धर्म के लोगों को छोड़ बाकी सब बच्चे पैदा करने में लगे हैं: गिरीराजसिंह

झारखंड के दुमका जिले के बासुकीनाथ धाम में पूजा करने पहुंचे बीजेपी मंत्री गिरीराज सिंह ने हिंदुओं पर टिप्पणी करते हुए पार्टीकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं। गिरीराज ने ब्यान दिया है कि देश में रह रहे हिंदुओं की जनसंख्या लगातार घटती जा रही है वहीं दूसरे समुदाय अपनी जनसंख्या बढाने में लगे हुए हैं। अगर ये सिलसिला यूं ही चलता रहा तो मंदिरों में भगवान की पूजा करने कौन आएगा। हिंदुओं के लगातार कम हो जनसँख्या पर हमें एक कड़ा कानून बनाने की जरूरत है। इस कानून में सभी समुदाय के लोगों के लिए दो बच्चों कोही रखने की आजादी होनी चाहिए क्योंकि देश के विकास और सामाजिक समरसता के लिए जनसंख्या कोकंट्रोल करना बहुत जरूरी है।मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधते हुए गिरिराज बोले कि मस्जिदों से जब भारत विरोधीनारे लगते हैं तब असहिष्णुता की बात करने वाले कहां चले जाते हैं। जब देश में आतंकी हमले होते हैं, कश्मीर में पत्थरबाजी होती है तब कोई क्यों नहीं बोल रहा।

कल तक अल्लाह के विरोध में नारे लगाने वाला,आज इस्लामे मोहब्बत में डूबा।

कहते हैं उस अल्लाह की एक नज़र ही काफी होती है ज़िन्दगी बदलने के लिए। उस अल्लाह के करम को समझने और जानने के लिए जाने कितनो ने कोशिश की लेकिन उस अल्लाह परवदिगार का भेद कोई नहीं पा सका है।कुछ ऐसा ही हुआ जर्मन के रहने वाले वेर्नेर कलावुन के साथ जोकि पिछले इस्लाम के दर पर पहुँचने से पहले कट्टड़ नाज़ी थे और इस्लाम का जमकर विरोध करते थे। लेकिन अल्लाह का नूर वेर्नेर पर कुछ यूँ बरसा कि जो हाथ इस्लाम के, अल्लाह के खिलाफ नारेबाजी में उठते थे वही हाथ आज अल्लाह की इबादत में उठने लगे।और यह मुमकिन हो पाया सिर्फ कुरान शरीफ की वजह से। जिसके बारे में वेर्नेर बताते हैं कि जब उन्होंने जर्मनी के महान कवि जोहांन वोल्फगांग की लिखी हुई ईस्टर्न दिवान और कवितायें पढ़ीं जिसमें जोहांन ने पैगम्बर मुहम्मद की तारीफ में बहुत कुछ लिखा हुआ था जिसके बाद उसने इस्लाम के बारे में पढ़ना शुरू किया। कुरान पढ़ी और उसे समझ आया कि दुनिया और ज़िन्दगी के जो रहस्य जो पहेलियाँ कुरान में सुलझा कर बताई गयी हैं वैसा किसी और धर्मग्रन्थ में नहीं बताया गया।इसी से प्रभावित होकर वेर्नेर ने इस्लाम को जानने के लिए कोशिश जारी रखी और इस्लाम की रहअपना ली। इस्लाम अपनाने के बाद वेर्नेर ने अपना नाम बदल कर इब्राहिम रख लिया और सीरिया,इराक और अफगानिस्तान से आये शरणार्थियों की सेवा में काम करना शुरू कर दिया।

विवादित बयान:पवित्र गाय सिर्फ हिन्दू की माँ नहीं बल्कि मुस्लिम की भी माँ है:शंकराचार्य

हरिद्वार -द्वारकाशारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने एक विवादित बयान दिया है उन्होंने कहा है कि पवित्र गाय सिर्फ हिन्दू की माँ ही नही है बल्कि मुस्लिमो की भी माँ है उन्होंने कहा कि गाय का दूध किसी और जानवर के मुकाबले ज्यादा लाभदायक हैउनका कहना है हिन्दू और मुस्लिम दोनों गाय से प्रोटीन लेते है इसलियें ये दोनों की माँ हुयी .उन्होंने कहा कि गौ हत्या के खिलाफ बनेकानून सही है कई बार कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याची गये लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हर बार ऐसी याचिका को रद्द कर दिया, कहा गाय के दूध के अलावा इसका मूत्र स्किन और हड्डी की बिमारी का अचूक इलाज़ है उन्होंने कहा कि गौ हत्या के ऊपर सज़ाके साथ इसके मॉस को बेचने वालो को भी सज़ा होनी चाहिए .https://m.facebook.com/Raziyaparveen7290/

ऑस्ट्रेलिया ने दिया मुस्लिम महिलाओ को तोहफा,हिजाब को दिया बैंक ने आधिकारिक पोशाक का दर्जा।

देश विदेश में हो रहे हिजाब के खिलाफ बार बार बयान बाज़ी और उसपर अनेक टिप्पणियाँ,यही वजह रही के जिहाब इक फैशन के तोर पर आज कल सबके ज़हनों पर छा गया है,लोगो का हिजाब की तरफ बढ़ता हुआ क्रेज़ देखकर यही अनुमान लगाया जा रहा है,जिसको गलत बताकर सब इसकी निंदा कर रहे थे आज वही इक फैशन के रूप में सबकी ज़िन्दगी में धीरे धीरे घर बनाता जा रहा है,हाल ही में आई हिजाब पर ऑस्ट्रेलिया से इक खबर के अनुसार,
कैनबरा। दुनियाभर में मुसलिम महिलाओं के पहनावे को लेकर कई तरह की पहल की जा रही हैं। अब ऑस्ट्रेलिया के ‘वेस्टपैक’ बैंक ने अपने कर्मचारियों की नई आधिकारिक पोशाक के तौर परनिगमित हिजाब को भी शामिल करने का फैसला किया है। ‘न्यूजकॉर्प’ की खबर के मुताबिक ये पोशाक मशहूर आस्ट्रेलिआई डिजाइनर कार्ला जम्पाटी डिजाइन करेंगी। इसे अप्रैल 2017 तक लान्च किए जाने की उम्मीद है।कॉमनवेल्थ बैंक और ऑप्टस जैसी कुछ संस्थान कर्मचारियों की आधिकारिक पोशाक के साथ हिजाब को शामिल कर चुकीं हैं। इसको ध्यान में रखकर ही ऑस्ट्रेलियाई बैंक ने ये कदम उठाया है। बैंक की प्रवक्ता ने कहा कि हल्के नीले रंग के इस हिजाब को वेस्टपैक के ‘डबल्यू’ लोगो के साथ डिजाइन किया गया है। ये लोगो, कार्यस्थल पर विविधता और अखंडता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि इसके जरिए हम लोगों को अपना समर्थन दिखा सकते हैं और कार्यस्थल पर अच्छा अनुभव करा सकते हैं।Facebook पर हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करेंसिडनी स्थित वेस्टपैक बैंक की शाखा में काम करने वाली कोनी वेहबे ने कहा कि मुझे कार्यस्थल पर हिजाब पहनना अच्छा लगता है, इससे दूसरों को मेरी संस्कृति और मेरे बारे में जानने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि हिजाब दिखाता है कि वेस्टपैक सारी संस्कृतियों को पहचानता और स्वीकार करता है।

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