Header

Tuesday, 9 August 2016

क्या मुसलमान पीठ में छुरा घोंपने वाली पार्टी के प्यार में अंधे हो गए हैं? - AIMIM

अफ़ज़ल को फांसी दी गई कांग्रेस पार्टी की सरकार ने, लेकिन मुसलमानों के कठघरे में खड़ी है बीजेपी. अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाने में 100 प्रतिशत योगदान और बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने में 50 प्रतिशत योगदान कांग्रेस का भी रहा, लेकिन मुसलमानों के कठघरे में खड़ी है अकेली बीजेपी. 1947 के बाद से देश में सैंकड़ों बड़े और हज़ारोंछोटे दंगे हुए… लेकिन देश उन तमाम दंगों को भूल गया. याद रहा तो सिर्फ़ एक दंगा- गुजरात का दंगा. यानी जो दंगे कांग्रेस ने करवाए या उसके शासन मे हुए, वे सभी देवी की उपासना और अल्लाह की इबादत के कार्यक्रम थे और जो दंगे बीजेपी ने करवाए या उसके शासन में हुए, सिर्फ़ वही कत्लेआम और नरसंहार माने गए.ऐसे चमत्कार यह साबित करते हैं कि बीजेपी की सांप्रदायकिता बचकानी है और कांग्रेस की सांप्रदायिकता शातिराना है. कांग्रेस सारे गुनाह करके भी अपना दामन साफ़ रखती है. कांग्रेस ने उजला कुरता, उजली टोपी चुनी. दाग लगेगा भी तो धो लेंगे, दामन फिर उजला हो जाएगा. बीजेपी ने भगवा कपड़ा, भगवा झंडा चुन लिया. कितना भी साफ़ करो, लाल से मिलता-जुलता ही दिखेगा. कांग्रेस ख़ून पीकर कुल्ला कर लेती है और आरएसएस-बीजेपी के वीर बांकुड़े अक्सर पानी में लाल रंग मिलाकर लोगों को डराने में अपनी बहादुरी समझते हैं.कांग्रेस की सियासत कुछ ऐसी रही कि जब उसे मुसलमानों को मारना हुआ, उसने मार दिया, लेकिन सामने आकर कहा कि यह निंदनीय कृत्य है, हम इसकी निंदा करते हैं. कभी बाज़ी उल्टी पड़ गई और लोग खेलसमझ गए, तो उसने बड़ी मासूमियत से माफ़ी मांग ली. दूसरी तरफ़ बीजेपी की सियासत ऐसी रही कि जब उसे मुसलमानों को नहीं भी मारना हुआ, तब भी उसने चीख़-चीख़कर कहा- “पाकिस्तान परस्तो, हम तुम्हें सबक सिखा देंगे. भारत में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा. भारत की खाओ और पाकिस्तान की गाओ, हम नहीं सहेंगे.”मेरी राय में मुसलमानों को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की सियासत में यही फ़र्क़ है. देश में आज जोइतनी सांप्रदायिकता है, उसके लिए अकेले आरएसएस और बीजेपी को ज़िम्मेदार मानने के लिए कम से कम मैं तो तैयार नहीं हूं. मेरी नज़र में आरएसएस और बीजेपी के उद्भव, उत्थान और उत्कर्ष की कहानी में कांग्रेस की दोगली सियासत का सबसे बड़ा रोल है. कांग्रेस अगर सही मायने में धर्मनिरपेक्षता की नीति पर चली होती, तो आज आरएसएस और बीजेपी का कहीं नामोनिशान नहीं होता.जब हमने लोकतंत्र अपनाया, सभी नागरिकों के हक़ और आज़ादी की बात की, धर्मनिरपेक्षता के कॉन्सेप्ट कोस्वीकार किया, तब हमें एक और चीज़ तय करनी चाहिए थी. वह यह कि हर हालत में ग़लत को ग़लत कहेंगे और सही को सही. वोट के लिए ग़लत को सही और सही को ग़लत कहना लोकतंत्र और संविधान की हत्या के बराबर है. और यह काम कांग्रेस पार्टी ने देश की किसी भी दूसरी पार्टी से बढ़-चढ़कर किया. उसने मुसलमानों के ग़लत को भी सही कहने से कभी परहेज नहीं किया. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलटना इसका क्लाइमैक्स था. इससे नुकसान हिन्दुओ को नहीं,हमारी करोड़ों मुस्लिम माताओं और बहनों को ही हुआ.देश की सभी पार्टियां सत्ता के लिए किसी भी हद तक नीचे गिरने को तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने पिछले 68 साल में साबित किया है कि उससे अधिक नीचे कोई नहीं गिर सकती. दुर्भाग्य से कांग्रेस केपास आज़ादी की लड़ाई की चकाचौंध भरी कहानियां और केश कटाकर कुर्बानी देने के ऐसे-ऐसे किस्से हैं, जिसकी बुनियाद पर उसने ऐसा माहौल बना रखा है, जिससेउसके सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं. जिन लोगों ने आज़ादी की लड़ाई में असली कुर्बानियां दीं, आज़ादीके बाद कांग्रेस ने उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया.लोग इस बात की भी अनदेखी कर देते हैं कि कांग्रेस को 1947 में किसी भी कीमत पर देश का विभाजन रोकना था, जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा भी था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा. लेकिन विभाजन तो गांधी जी की लाशपर नहीं हुआ… हां, विभाजन की वजह से उनकी लाश ज़रूरगिर गई. जवाहर लाल नेहरू को सत्ता सौपने के लिए देशका विभाजन होने दिया गया. और यह कहने की ज़रूरत नहीं कि उसी एक विभाजन की वजह से पिछले 68 साल से भारत में न सिर्फ़ लगातार तनाव का वातावरण बना हुआहै, बल्कि भारत और पाकिस्तान- एक ही ख़ून- एक दूसरे का ख़ून पीने पर आमादा रहते हैं.हिन्दू और मुसलमान भारत माता की दो आंखें हैं और कांग्रेस पार्टी ने पिछले 68 साल में उन दोनों आंखों को फोड़कर देश को अंधा बनाने का काम किया है.और इस तरह इस कानी पार्टी ने अंधों की रानी बने रहने का नुस्खा ढूँढा ।(लेखक आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के दिल्ली कमेटी के नेता हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

No comments:

Post a Comment

Comments system

Disqus Shortname

My site