नई दिल्ली।कभी-कभी सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि कैसे-कैसे लोग देशभक्त होने का दावा करते हैं। ये कैसे देशभक्त है जिन्हें ये भी नहीं मालूम की देश का झंडा असल में है कैसा। इस तरह के लोग अकसर देखा-देखी या फिर दिखावे के लिए देशभक्त बन जाते हैं। असल में उन्हें देशभक्ति के बारे में कुछ पतानहीं और न ही उन्हें देश भक्ति से कुछ लेना देना है। ऐसे लोग बस जनता को बेवकूफ बनाना जानते हैं। लेकिन वो ये नहीं समझते कि 'ये पब्लिक है ये सब जानती है'याद करो कुर्बानी कार्यक्रम के तहत भाजपा की ओर सेरामगढ़ बानसूर में निकाली गई प्रभात फेरियों में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का मामला सामने आया है। रामगढ़ में कार्यक्रम का आयोजन भाजपा मंडल अध्यक्ष नंदराम गुर्जर की तरफ से किया गया। गोविंदगढ़ मोड़ स्थित भाजपा मंडल कार्यालय से आजादी की 70वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ प्रभात फेरी निकाली जानी थी। भाजपा कार्यकर्ता मंडल अध्यक्ष नंदराम गुर्जर मंडल कार्यालय पर पहुंच गए यहां उल्टा राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए मंडल अध्यक्ष नंदराम गुर्जर कार्यकर्ताओं के साथ मार्च करने में जुट गए।तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया सबसे नीचे हरा रंग होता है, जबकि यहां हरा रंग ऊपर और केसरिया रंग नीचे था। बताया जाता है कि प्रभातफेरी मार्च के दौरान मुख्य मार्ग से होकर जा रहे एक चौपहिया वाहनमें सवार किसी व्यक्ति ने उल्टा तिरंगा देखकर इन लोगों को टोका भी था। इसके बावजूद राष्ट्रीय ध्वज को सीधा नहीं किया गया। इसके बावजूद उल्टे तिरंगे के साथ किए जा रहे मार्च की फोटो स्वयं भाजपा मंडल अध्यक्ष नंदराम गुर्जर ने सोशल मीडिया पर डाल दी।वहीं इस पर नंदराम गुर्जर का कहना था कि मुझे पता नहीं था कि राष्ट्रीय ध्वज उल्टा है। मुझे किसी नेनहीं कहा कि हमने उल्टा ध्वज लगा रखा है। गलती से ऐसा हो गया। मैंने ही व्हाट्सअप पर फोटो डाल दी थी।भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच की पट्टी का सफेद धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। इस क्रम को किसी भी सूरत में नहीं बदला जा सकताहै। यदि झंडा किसी जुलूस या परेड में अन्य झंडों के साथ ले जाया जा रहा है तो झंडे को जुलूस के दाहिने ओर या सबसे आगे बीच में रखना चाहिए। तिरंगाका अपमान होने पर भारतीय ध्वज आचार संहिता 2002 राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा-2 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें 3 वर्ष की सजा या जुर्माने या फिर दोनों ही हो सकते हैं।
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