बगैर नींद के जीवन की परिकल्पना नहीं की जासकती है लेकिन पूर्व सयुंक्त कलेक्टर मोहनलाल द्विवेदी ऐसे शख्स हैं जो 44 सालों में एक पल भी नहीं सोए हैं।रीवा।बगैर नींद के जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है लेकिन पूर्व सयुंक्त कलेक्टर मोहन लाल द्विवेदी ऐसे शख्स हैं जो 44 सालों में एक पल भी नहीं सोए हैं। एकसामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी रहे हैं। किसी भी मनुष्य के लिए यह स्वीकार कर पाना मुश्किल है। पर हकीकत यही है। उन्हें नींद क्यों नहीं आती, यह मेडिकल साइंस के बड़े से बड़े डॉक्टर भी पता नहीं लगा पाए हैं। वह चलते-फिरते अजूबा हैं। पत्रिका से उन्होंने अपने जीवन को साझा किया।द्विवेदी कहते हैं कि वर्ष 1973 जुलाई कामहीना था। तारीख उन्हें याद नहीं। अचानक एक रात नींद गायब हो गई। इसके बाद से उन्हें नींद नहीं आई। उस दौर में वह स्वामीविवेकानंद महाविद्यालय त्योंथर में व्याख्याता थे। कई दिनों तक अपनी समस्या को छिपाए रहे। घरवालों और दोस्तों तक से शेयर नहीं किया। रात-रात चुपचाप बिस्तर में पड़े रहते थे। आंखों में न जलन होती थीऔर न ही शरीर की अन्य क्रियाओं में फर्क आया।1977 में प्रशासनिक सेवा में चयनवर्ष 1977 में राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए। इसके बाद उन्होंने खामोशी तोड़ी और पहले झाड़-फूंक करवाया। घर के लोगभूत की आशंका करते थे। फिर भी नींद नहीं आईतो डॉक्टरों से इलाज कराना शुरू किया। द्विवेदी बताते हैं कि दो साल तक बाम्बे हॉस्पिटल, मुंबई के डॉक्टरों को दिखाया। मानसिक रोग विशेषज्ञ, मेडिसिन के डॉक्टरोंने कई प्रकार की जांचे कराई। लेकिन रिपोर्ट शून्य रही।बाम्बे हॉस्पिटल भी हाराआखिर में बाम्बे हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने कहा कि जब कोई तकलीफ शरीर में नहीं है तो फिर क्यों इलाज करा रहे हो। इसके बाद से आजतक कोई दवा नहीं ली। यहां तक कि नींद की गोली भी कभी नहीं खाई। द्विवेदी ने बताया कि मूलरूप से जनकहाई त्योंथर के रहने वाले हैं। बचपन से पढ़ाई में अव्वल रहे। अर्थशास्त्र में स्नाकोत्तर की उपाधि ली है। पिता रामनाथ द्विवेदी के बारे में बोले कि वे भी रात में तीन से चार घंटे ही सोते थे। वर्तमान मेंं जेपी रोड पडऱा में रहते हैं।पन्ना में होती थी मेरी जासूसीपूर्व संयुक्त कलेक्टर मोहनलाल द्विवेदी कहते हैं कि जब वे पन्ना में पदस्थ थे लोग रात में उनकी जासूसी करते थे। कि संयुक्त कलेक्टर सोते हैं कि नहीं। क्योंकि लोगों को विश्वास नहीं होता था। पन्ना के बाद सीधी जिले में रहे। यहां भी लोग जासूसी करते थे। उनका कहना है नींद न आने से वे प्रशासनिक सेवा को बखूबी अंजाम देते थे। समय पर आफिस पहुंचना और रात 8 बजे तक काम निपटाना उनकी दिनचर्या थी।परिवार पर पड़ रहा असरनींद न आने का असर उनके परिवार पर पड़ रहा है। इसे लेकर अब वे चिंतित हैं। उनके एक बेटी प्रतिभा है। साथ में दो भतीजे रहते हैं। पत्नी नर्मदा द्विवेदी उनके इस जीवन की साक्षी हैं। देर रात तक जगना इनकी भी आदत बनती जा रही है। एक ही छत के नीचे दो तरह का जीवन जीना चुनौती है। द्विवेदी बताते हैं कि उनकी रात, दिन से बेहतर होती है। क्योंकि वे दिन से ज्यादा रात में अपनेको स्फूर्त मानते हैं। 4-5 घंटे वे धर्म से जुड़ी किताबें पढ़ते हैं। भोर मे योग शुरू कर देते हैं।
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