Header

Saturday, 6 August 2016

ए सियासत वालो जान हमने भी गंवाई है वतन की ख़ातिर...

लखनऊ।  'कुछ लोगों' की वजह से पूरी मुस्लिम क़ौम को शक की नज़र से देखा जाने लगा है... इसके लिए जागरूक मुसलमानों को आगे आना होगा... और उन बातों से परहेज़ करना होगा जो मुसलमानों के प्रति 'संदेह' पैदा करती हैं... कोई कितना ही झुठला ले, लेकिन यह हक़ीक़त है कि हिन्दुस्तान के मुसलमानों ने भी देश के लिए अपना खू़न और पसीना बहाया है. हिन्दुस्तान मुसलमानों को भी उतना ही अज़ीज़ है, जितना किसी और को... यही पहला और आख़िरी सच है... अब यह मुसलमानों का फ़र्ज़ है कि वो इस सच को 'सच' रहने देते हैं... या फिर 'झूठा' साबित करते हैं...इस देश के लिए मुसलमानों ने अपना जो योगदान दिया है, उसे किसी भी हालत में नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता. कितने ही शहीद ऐसे हैं, जिन्होंने देश के लिएअपनी जान तक कु़र्बान कर दी, लेकिन उन्हें कोई याद तक नहीं करता. हैरत की बात यह है कि सरकार भी उनका नाम तक नहीं लेती. इस हालात के लिए मुस्लिम संगठन भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं. वे भी अपनी क़ौम और वतनसे शहीदों को याद नहीं करते.हमारा इतिहास मुसलमान शहीदों की कु़र्बानियों से भरा पड़ा है. मसलन, बाबर और राणा सांगा की लड़ाई में हसन मेवाती ने राणा की ओर से अपने अनेक सैनिकों के साथ युध्द में हिस्सा लिया था. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की दो मुस्लिम सहेलियों मोतीबाई और जूही ने आख़िरी सांस तक उनका साथ निभाया था. रानी के तोपची कुंवर गु़लाम गोंसाई ख़ान ने झांसी की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी. कश्मीर के राजा जैनुल आबदीन ने अपने राज्य से पलायन कर गए हिन्दुओं को वापस बुलाया और उपनिषदों के कुछ भाग का फ़ारसी में अनुवाद कराया. दक्षिण भारत के शासक इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय ने सरस्वती वंदना के गीत लिखे. सुल्तान नाज़िर शाहऔर सुल्तान हुसैन शाह ने महाभारत और भागवत पुराण का बंगाली में अनुवाद कराया. शाहजहां के बड़े बेटेदारा शिकोह ने श्रीमद्भागवत और गीता का फ़ारसी में अनुवाद कराया और गीता के संदेश को दुनियाभर में फैलाया.गोस्वामी तुलसीदास को रामचरित् मानस लिखने की प्रेरणा कृष्णभक्त अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना से मिली. तुलसीदास रात को मस्जिद में ही सोते थे. 'जय हिन्द' का नारा सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज के कप्तान आबिद हसन ने 1942 में दिया था, जो आज तक भारतीयों के लिए एक मंत्र के समान है. यह नारा नेताजी को फ़ौज में सर्वअभिनंदन भी था.छत्रपति शिवाजी की सेना और नौसेना के बेड़े में एडमिरल दौलत ख़ान और उनके निजी सचिव भी मुसलमान थे. शिवाजी को आगरे के क़िले से कांवड़ के ज़रिये क़ैद से आज़ाद कराने वाला व्यक्ति भी मुसलमान ही था. भारत की आज़ादी के लिए 1857 में हुए प्रथम गृहयुध्द में रानी लक्ष्मीबाई की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनके पठान सेनापतियों जनरल गुलाम ग़ौस ख़ान और ख़ुदादा ख़ान की थी. इन दोनों ही शूरवीरों ने झांसी के क़िले की हिफ़ाज़त करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. गुरु गोबिन्द सिंह केगहरे दोस्त सूफ़ी बाबा बदरुद्दीन थे, जिन्होंने अपने बेटों और 700 शिष्यों की जान गुरु गोबिन्द सिंह की रक्षा करने के लिए औरंगंज़ेब के साथ हुए युध्दों में कु़र्बान कर दी थी, लेकिन कोई उनकी क़ुर्बानी को याद नहीं करता. बाबा बदरुद्दीन का कहना था कि अधर्म को मिटाने के लिए यही सच्चे इस्लाम की लड़ाई है.अवध के नवाब तेरह दिन होली का उत्सव मनाते थे. नवाबवाजिद अली शाह के दरबार में श्रीकृष्ण के सम्मान में रासलीला का आयोजन किया जाता था. नवाब वाजिद शाह अली ने ही अवध में कत्थक की शुरुआत की थी, जो राधा और कृष्ण के प्रेम पर आधारित है. प्रख्यात नाटक 'इंद्र सभा' का सृजन भी नवाब के दरबार के एक मुस्लिम लेखक ने किया था. भारत में सूफ़ी पिछले आठ सौ बरसों से बसंत पंचमी पर 'सरस्वती वंदना' को श्रध्दापूर्वक गाते आए हैं. इसमें सरसों के फूल औरपीली चादर होली पर चढ़ाते हैं, जो उनका प्रिय पर्व है. महान कवि अमीर ख़ुसरो ने सौ से भी ज़्यादा गीत राधा और कृष्ण को समर्पित किए थे. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की बुनियाद मियां मीर ने रखी थी. इसी तरह गुरु नानकदेव के प्रिय शिष्य व साथी मियां मरदाना थे, जो हमेशा उनके साथ रहा करते थे. वह रबाब के संगीतकार थे. उन्हें गुरुबानी का प्रथम गायक होने का श्रेय हासिल है. बाबा मियां मीर गुरु रामदास के परम मित्र थे. उन्होंने बचपन में रामदासकी जान बचाई थी. वह दारा शिकोह के उस्ताद थे. रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों में से एक थे जैसे भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी आदि. रसखान अपना सब कुछ त्याग कर श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन हो गए. श्रीकृष्ण की अति सुंदर रासलीला रसखान ने ही लिखी.श्रीकृष्ण के हज़ारों भजन सूफ़ियों ने ही लिखे, जिनमें भिकान, मलिक मोहम्मद जायसी, अमीर ख़ुसरो, रहीम, हज़रत सरमाद, दादू और बाबा फरीद शामिल हैं. बाबा फ़रीद की लिखी रचनाएं बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा बनीं.बहरहाल, मुसलमानों को ऐसी बातों से परहेज़ करना चाहिए, जो उनकी पूरी क़ौम को कठघरे में खड़ा करती हैं...जान हमने भी गंवाई है वतन की ख़ातिरफूल सिर्फ़ अपने शहीदों पे चढ़ाते क्यों हो...

No comments:

Post a Comment

Comments system

Disqus Shortname

My site