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Sunday, 7 August 2016

गोहत्या के नाम पर तांडव करने वाले ये देखे:मन्नत पूरी होने पर दी जाती है बकरे की बलि,खून से होती है पूजा

गोरखपुर।चौरी-चौरा के देवीपुर में तरकुलहा देवी का मंदिर है। यहां मन्नत पूरी होने पर रामनवमी के दूसरे दिन से भक्त बकरों की बलि देते हैं। इसके बाद उससे निकलने वाले खून को देवी को अर्पित करते हैं और पूजा करते हैं। गर्दन और उससे नीचे के हिस्से के मीट को भक्त हांडी-भगौने में पकाते हैं और उसे मां के प्रसाद रूप में यहीं बैठकर परिवार के साथ खाते हैं।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यहां वजन के हिसाब से लोग बकरे को लेकर पहुंचते हैं। मंदिर में पूजा करने के बाद बकरे को नहलाने के बाद उसकी पूजा की जाती है।  इसके बाद बकरे के सिर पर घर की कोई महिला धार (लोटे में भरा पानी) गिराती है। मंदिर के बगल में बने बेड़े में बकरे को ले जाया जाता है। दोनों पैरों को पकड़कर सिर को एक वार में धड़ से अलग कर दिया जाता है। धड़ को उठाकर दूसरी जगह ले जाया जाता है। सिर से निकल रहे खून को भक्त मां की पिंडीपर अर्पित कर देता है।  बकरे के सिर को जानवरों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। एक बकरा काटने के लिए 11 रुपए से लेकर 51 रुपए भक्तों से वसूले जाते हैं।मान्यता है कि महाकाली के रूप में विराजमान जगराता माता तरकुलही पिंडी के रूप में विराजमान हैं।  इस पिंडी को क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह ने स्थापित किया था।  कहा जाता है कि बंधू सिंह अंग्रेजों की बलि देने के बाद इसी पिंडी पर उनका खून चढ़ाते थे। ऐसा करने से उन्हें अलौकिक शक्ति का एहसास होता था।

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