Header

Monday, 22 August 2016

आखिर इंसानी जिंदगी का मकसद क्या है, यह बात सिर्फ इस्लाम ही सिखाता है सबको

प्रोफेसर बैनिल हैविट, अमेरिका के  एक मशहूर विचारक और लेखक रहे हैं। उनकी गिनती अमेरिका के इस्लाम कबूल करने वाले अहम लोगों में की जाती है। उनका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह हसन बैनिल है। इस लेख में उन्होंने इस्लाम की उन खूबियों का जिक्र  किया है जिनसे वे बेहद प्रभावित हुए।पेश है वह कैसे इस्लाम में दाखिल हुवे, उन्हीं की ज़ुबानी :मेरा इस्लाम कबूल करना कोई ताज्जुब की बात नहीं हैन ही इसमें किसी तरह के लालच का कोई दखल है। मेरे खयाल में यह जहन की फितरती तब्दीली और उन धर्मों का ज्यादा अध्ययन करने का नतीजा है जो इंसानी अक्लों  पर काबिज है। मगर यह बदलाव उसी शख्स में  पैदा हो सकता है जिसका दिल व दिमाग धार्मिक पक्षपात और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठा हुआ हो और साफदिल से अच्छे और बुरे में अंतर कर सकता हो।मैं मानता हूं कि ईसाइयत में भी कुछ सच्चे और मुफीद उसूल मौजूद हैं लेकिन इस धर्म में पादरियों ने कई गलत चीजों  को मिला दिया। उन्होंने इस तरह इसधर्म की सूरत को बिगाड़ कर रख दिया और इसे बिलकुल बेजान कर डाला। इसके विपरीत इस्लाम उसी मूल शक्ल में मौजूद है जिसमें वह प्रकट हुआ। चूंकि मैं एक ऐसे धर्म की तलाश में था जो मिलावट से पवित्र हो इसलिए मैंने इस्लाम कबूल कर लिया।आप किसी चर्च में चले जाइए वहां नक्श व निगार, तस्वीरों और मूर्तियों के सिवा आपको कुछ नहीं मिलेगा। इसके अलावा पादरियों के चमकते दमकते वस्त्रों पर नजर डालिए, फिर ननों की भीड़ को देखिए तो उनका रूहानियत से दूर का संबंध भी दिखाई नहीं देता। ऐसा मालूम होता है कि हम किसी इबादत खाने में नहीं बल्कि एक ऐसे बुतखाने में खड़े हैं जो सिर्फ  बुतों की पूजा के लिए बनाया गया है। उसके बाद मस्जिद पर नजर डालिए। वहां आपको न कोई मूरत दिखाई देगी और न तस्वीर। फिर नमाजियों की लाइनों पर नजर डालिए। हजारों छोटे बड़े इंसान कंधे से कंधा मिलाए खड़े नजर आएंगे। सच तो यह है किनमाज में रूकू और सजदों का मंजर इस कदर दिल और नजर को खींचने वाला होता है कि कोई इंसान इससे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता।मस्जिद का पूरा माहौल और उसकी तमाम चीजें रूहानियत (अध्यात्म) की तरफ इंसान की रहनुमाई करती है। न वहां बनावट है और न बुनियादी सजावट।। इसके विपरीत चर्च की तमाम चीजों में भौतिक चमक-दमकका दिखावा बहुत ज्यादा है। हो सकता है कि कुछ लोग ऐतराज करें कि प्रोटेसटेंट धर्म  तो इन बुराइयों से पवित्र है और उसने तो अपने गिरजों से बुत और तस्वीरें निकाल फैंकी है, तुमने इस्लाम के बजाय इसे कबूल क्यों नहीं किया। बेशक प्रोटेसटेंट धर्मसच्चे ईसाई मजहब के करीब जरूर है मगर मैं इस विश्वास के बावजूद कि की ईसा मसीह एक पैगम्बर थे हर्गिज उनकी उलूहियत का काइल नहीं। वे मेरी ही तरहएक इंसान थे और मेरी यह आस्था कोई नई नहीं है बल्किशुरू से ही मैं इसका इजहार करता रहा हूं। जो न सिर्फ हजरत मसीह अलैहिस्सलाम का ही आदर सिखाता है बल्कि दुनिया के तमाम धर्मों और धर्म के मानने वालों के आदर की दावत देता है।मेरा एक लंबे समय से इस्लाम की तरफ झुकाव था, लेकिन मेरा ईमान इतना मजबूत नहीं हुआ था कि बेधड़क अपने मुसलमान होने का ऐलान कर सकता। यह संकोच किसी   समाज या इंसान के डर के कारण नहीं था बल्कि उसकी वजह यह थी कि मैं पूरी तरह इस्लाम की खूबियों  से परिचित नहीं था। लेकिन इस्लाम के बारे में जैसे- जैसे इस्लामिक विद्वानों की किताबें पढ़ता गया, मेरी आंखें खुलती गईं। मुझे साफ तौर पर इस धर्म की खूबियां और  इसके आखरी पैगंबर मुहम्मद सल्ल. का इंसानों पर एहसान मालूम हो गया और आखिर में मैंने इस मजहब को अपना लिया।इस्लाम जैसी तौहीद परस्ती (ईश्वर को एक मानना, एकेश्वरवाद) मैंने देखी है, वह किसी दूसरे धर्म में नहीं पाई जाती। इस्लाम के इसी एकेश्वरवाद ने सबसे पहले मुझे इस धर्म की तरफ खींचा। इस्लाम में जो सबसे बड़ी खूबी मैंने पाई वह यह है कि वह सिर्फ रूहानी तरक्की (आध्यात्मिक विकास) की ही बात नहीं करता बल्कि वह दुनियावी तरक्की में भी बहुत बड़ा मददगार है। इस्लाम इंसान को दुनिया छोडऩे और संन्यासी की जिंदगी गुजारने की तालीम नहीं देता बल्कि वह इंसान को दुनियावी जिंदगी को बेहतर बनाने और इसमें कामयाबी हासिल करने  की प्रेरणा देता है।इस्लाम धार्मिक मामलों में ही इंसान का मार्गदर्शन नहीं करता बल्कि दुनिया के हर मामले में इंसान को बेहतर रास्ता दिखाता है और उसके हर कदम पर रहनुमाई करता है। इस्लाम ने दुनिया को आखिरत (परलोक) की खेती करार दिया है और इंसान को हुक्म दिया है कि वह धार्मिक कर्तव्यों को निभाने के साथ-साथ दुनिया से जुड़े अपने कर्तव्यों को निभाने में भी कोताही न बरते। सच तो यह है कि मौजूदा वैज्ञानिक दौर में इस्लाम ही अकेला ऐसा  धर्म है जो तरक्की पसंद इस दुनिया की सही तौर पर रहनुमाई कर सकता है, इसे सही राह दिखा सकता है।इस्लाम की बड़ी खूबियों में से एक खूबी यह है कि यहसंकुचित सोच और पक्षपात का सख्त विरोधी है। इस्लाम सिर्फ अपने धर्म के मानने वालों के साथ ही मोहब्बत और अच्छे बर्ताव की हिदायत नहीं देता बल्कि वह सब इंसानों के साथ चाहे वह किसी भी धर्म के साथ ताल्लुक रखते हों, हमदर्दी, बराबरी और अच्छेबर्ताव का हुक्म देता है। वह इंसानों को बांटने नहीं बल्कि जोडऩे का पक्षधर है। सच तो यह है कि इस्लाम ने ही इंसानों को पहली बार इंसानियत का सबकसिखाया है।मैं पिछले पांच सालों से इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल कर रहा हूं, इस धर्म से जुड़ी उपासना कर रहा हूं। जिस बात ने मेरे ईमान और यकीन को मजबूती दी हैवह इस्लाम के पवित्र और बुलंद उसूल हैं। इसकी विश्वव्यापी भाईचारगी है। उसकी बेमिसाल बराबरी है और उसका इल्म और सादगी है जिसने मेरे दिल व दिमाग में एक नई रोशनी पैदा कर दी है।इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो सिर से पांव तक इल्म व अमल है बल्कि मैं तो कहूंगा कि इस्लाम कबूल किए जाने वाला धर्म है। दूसरी तरफ ईसाइयत ऐसा धर्म है जो न सिर्फ ईश्वर के एक होने यानी एकेश्वरवार का इनकार करने वाला है बल्कि इंसान को दुनिया और उसकीनेमतों से फायदा उठाने से मना करता है। कोई शख्स अगर सही मायने में ईसाई बनना चाहे तो उसे दुनिया से किनारा करके एकांत को अपनाना पड़ेगा। मगर इस्लाम में रहकर हम दुनिया की तमाम राहतों और खुशियों से फायदा उठा सकते हैं। ना हमें मस्जिद केकिसी कोने में हरदम बैठे रहने की जरूरत है और न वीरानों में जिंदगी बसर करने की मजबूरी होगी।अगर इंसान को दुनिया में इसिलिए भेजा गया है कि दुनिया को छोड़कर संन्यासी जिंदगी अपनाए तो उसकी पैदाइश का मकसद समझ में नहीं आता। इंसानी जिंदगी का मकसद क्या है, यह सिर्फ इस्लाम ने समझाया है कि इंसान दुनिया में रहकर कुदरत की हर चीज से फायदा उठाए मगर साथ ही अपने पालनहार और उसकी सृष्टि का भी खयाल रखें।मैंने जबसे इस्लाम कबूल किया है, दिली सुकून महसूस कर रहा हूं। मेरी दुनिया भी दुरुस्त हो गई है और आखिरत (परलोक) भी।इंशाअल्लाह……# तक़वा इस्लामिक स्कूल


नोट,  इस वेबसाइट से जुड़कर समाज सेवा करने हेतु आप इसके एडिटर (मोहम्मद ज़ाहिद) से संपर्क कर सकते है।मोबाइल नंबर--9528183002

No comments:

Post a Comment

Comments system

Disqus Shortname

My site