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Tuesday, 2 August 2016

क्या हिन्दू धर्म में दहेज़ लेना पाप है जानिए यहाँ।

हिन्दू धर्म की पुस्तकों में विवाह सम्बन्धी अलग-अलग मत है पिफर भी किसी मत के अनुसार भी दहेज की मान्यता का पता नही चलता, कि किस प्रकार हमारी संस्कृति मं दहेज का चलन प्रारम्भ हो गया? हिन्दु धर्म शास्त्रो में विवाह के अवसर परकन्यादान को ही महान दान बतायागया है, जिस तरह आधुनिक संस्कृति में शादी विवाह में दहेज का चलन शुरू हुआ इसका पता लगाना बडा मुशकिल है लेकिन यह सापफ तोर पर कहा जा सकता है कि दहेज की प्रथा स्वार्थी लोगों की ही देन रही होगी। बहुत से लोग इन्सानियत के धर्मको ही सर्वोसारी मानते है, जरा ठंडे मन से प्रत्येक मनुष्य विचार करके देखे कि क्या लडकी पक्ष से दहेज लेना लड की वालो पर जुल्म नही है। फैसला स्वयं करें क्योकि कुछ ही लोग होगें जिनकी लड कियां नही होती, लड कियां तो सभी के यहां होती है दहेज रूपी पफाँसी का यह पफंदा इन्सान ने अपने लिए स्वयं तैयार किया, किसी और ने नही। अगर हम विश्व विखयात महा)षि मनु की अमर कृति मनुस्मर्ति में हिन्दू रीती रिवाज़ में विवाह के प्रकार का अवलोकन करते है तो ज्ञान होता है कि ब्रह्य, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर गार्न्ध्व, राक्षस व पैशाचिक, आठ प्रकार के विवाह कहे गये है। ब्रह्मण के लिए ६ प्रकार के, ब्रह्म, देव आर्ष प्रजापत्य, गर्न्ध्व व आसुर विवाह र्ध्मानुकूल कहे गये है।, क्षत्राीय के लिए देव आर्षप्राजापत्य व आसुर चार प्रकार के विवाह धर्मानुकूल कहे गये। वैश्य व शुद्र के लिए राक्षस व पैशाच विवाह को छोड कर आर्ष प्राजापत्य व आसुर तीन प्रकार के विवाह धर्मानुकूल कहे गये है। राक्षस व पैशाचिक विवाह कोअत्यन्त नीच तुछ पाप से युक्त कहा गया है। श्रेष्ठ शील स्वभाव युक्त वर को बुलाकर उसे अलंकृत व पूजित कर केवल कन्यदान करना ब्रह्म विवाह है। यज्ञ में विध्पिूर्वक कर्म करते हुऐ)त्विज को अलंकृत कर कन्यादान को दैव विवाह कहा गया है। र्ध्मार्थ एक या दो जोडी गाय या बैल वर से लेकर विध्वित कन्यादान को आर्ष विवाह कहते है। तुम दोनो एक साथ रहते हुए गृहधर्म का पालन करों, यह कहते हुए पूजन करके जो कन्यादान किया जाता है वह प्राजापत्य विवाह कहलाता है। अपने सामार्थ्य अनुसार कन्या के पिता और कन्या को ध्न देकर स्वेछन्दता पूर्वक कन्या ग्रहण करना आसुर विवाह कहलाता है। विघन बाध उत्पन्न करने वालों को मारकर अथवा घायल कर घर के दरवाजे आदि को तोड कर रुदन करती (रोती) हुई कन्या को उसके घर से बल पूर्वक हरण (छीन)कर लेजाने का नाम राक्षस विवाहहै। किसी निर्बल अहसाय मंबुद्धि पागल स्त्री के साथ संभोग (बलात्कार) करना पैशाचिक विवाह कहलाता है। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक २१ से ३४ तक) जो पति पत्नी या संबन्धी वर्ग अज्ञान वश स्त्री ध्न (दहेज) से अपना जीवन यापन करते हैं, उसके आभूषण वस्त्रा और वाहन कोबेच कर गुजर करते हैं वे पातकी नरक गामी होते हैं। (मनुस्मृतिअध्याय ३ श्लोक ५२) जिन कन्याओं को विवाह में वर पक्ष द्वारा दिया हुआ वस्त्रा, आभूषण पिता भ्राता आदि नही लेते वरन कन्या ही को देते हैं वह विक्रय नही हुआ, वह कुमारियों का पूजन है। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५४)विशेष कल्याण कामना युक्त माता पिता भाई पति और देवरों को उचित है कि कन्या, स्त्री का सत्कार करें, और वस्त्रा अलंकार आदि से भूषित (सजायें) करें जिन कुल में स्त्रिायां सम्मानित होती हैं। उस कुल से देवगण प्रस्नन होते हैं। और जहां स्त्रिायों का तिरस्कार होता है वहां सभी क्रियाएं (यज्ञआदिक कर्म) निष्पफल होते हैं। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५५, ५६) जिस कुल में बहु, बेटियां कलेश पाती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट होजाता हैं किन्तु जहां इन्हे किसी प्रकार का दुख नही होता वह कुल सर्वदा वृद्धि को प्राप्त होता है। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५७) उपरोक्त श्लोकों का अवलोकन करने से पताचलता है कि कन्या के लिए वर पक्ष की और से ही सभी प्रकार कासाजोसामान का प्रबन्ध् किया जाता है कन्या पक्ष से दहेज नही लिया जाता। तथा कन्या या स्त्राी पर किसी प्रकार का जुल्म करना उचित नही है जो कि एक बहुत बड़ा पाप है। अलंकृत व पूजित कर केवल कन्यदान करना ब्रह्म विवाह है। यज्ञ में विध्पिूर्वक कर्म करते हुऐ )त्विज को अलंकृत कर कन्यादान को दैव विवाह कहा गया है। र्ध्मार्थ एक या दो जोडी गाय या बैल वर से लेकर विध्वित कन्यादान को आर्ष विवाह कहते है। तुम दोनो एक साथ रहते हुए गृहधर्म का पालन करों, यह कहते हुए पूजन करके जो कन्यादान किया जाता हैवह प्राजापत्य विवाह कहलाता है। अपने सामार्थ्य अनुसार कन्या के पिता और कन्या को ध्न देकर स्वेछन्दता पूर्वक कन्याग्रहण करना आसुर विवाह कहलाता है। विघन बाध उत्पन्न करने वालों को मारकर अथवा घायल कर घर के दरवाज े आदि को तोड कर रुदन करती (रोती) हुई कन्या को उसके घर से बल पूर्वक हरण (छीन)कर लेजाने का नाम राक्षस विवाहहै। किसी निर्बल अहसाय मंदबुद्धि या पागल स्त्री के साथ संभोग (बलात्कार) करना पैशाचिक विवाह कहलाता है। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक २१ से ३४ तक) जो पति पत्नी या संबन्धी वर्ग अज्ञान वश स्त्री धन (दहेज) से अपना जीवन यापन करते हैं, उसके आभूषण वस्त्रा और वाहन को बेच कर गुजर करते हैं वे पातकी नरक गामी होते हैं। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५२) जिन कन्याओं को विवाह में वर पक्ष द्वारा दिया हुआ वस्त्रा, आभूषण पिता भ्राता आदि नही लेते वरन कन्या ही को देते हैं वह विक्रय नही हुआ, वह कुमारियों का पूजन है। (मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५४)विशेष कल्याण कामना युक्त माता पिता भाई पति और देवरों को उचित है कि कन्या, स्त्री का सत्कार करें, और वस्त्रा अलंकार आदि से भूषित (सजायें) करें जिन कुल में स्त्रिायां सम्मानित होती हैं। उस कुल से देवगण प्रस्नन होते हैं। और जहां स्त्रिायों का तिरस्कार होता है वहां सभी क्रियाएं (यज्ञआदिक कर्म) निष्पफल होते हैं।

लेखक---मेराजुद्दीन

नोट,  इस वेबसाइट से जुड़कर समाज सेवा करने हेतु आप इसके एडिटर (मोहम्मद ज़ाहिद) से संपर्क कर सकते है।
मोबाइल नंबर--9528183002

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